सूर : एक अध्ययन | Soor : Ek Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इसके पश्चात्‌ दो-तीन शताब्दियों तक इन विचारों का प्रावल्य रहा और समस्त भारत से शंकर के अष्ठेतवाद की प्रधानता रही । ० क के ৯২২ 9 © अ, बारहवी शताव्दी में फिर रामानुज ने विशिष्टाहेत एवं सध्वाचाय ने हेत- वाद का प्रचार किया ! रामानुन जीवात्मा, जगत ध्रौर ब्रह्म को एक ही मानते है । जीवात्मा और जगत ह्य से ही निके हे, कितु पृथक होकर, विशिष्ट गुणों से समन्वित होकर ये कायं-रूप मे धरथक-पृथक परिणत होते है । मध्वाचाय जीव, प्रकृति अर ईैश्वर को भिन्न-भिन्न मानते हे । इस समय तक प्ुसलमानों का न तो राजनीतिक और न धामिक ही कोई प्रभाव पडा था। किन्तु इसके पश्चात्‌ भारतीय साहित्य, कला, संस्कृति एवं धर्स पर उनका प्रभाव स्पष्ट रूप से लक्षित होने लगा । मुसलमान लोग एकेश्वरवादी थे। उनमे सब बाते एक ही थी । एक खुदा ; खुदा का एक पुन्न ; मुसलमान मुसलमाच सब एक । शांति भौर विग्रह मे सब समय एकता उनकी नीति, न्याय ध्र धम्मं था। उनमे न कोई जाति थी, न कोई पंथ । प्रारम्भ से जबकि वे आये तब कोई दूसरा भाव था । धीरे-धीरे वह भाव बदलने लगा | अब सम्पत्ति-हरण कर अपने देश को लौट जाने का भाव न था । इस समय तक वे अग- णित हिन्दुओं को इस्लाम के ऋण्डे के नीचे ला चुके थे। कई हिन्दू- स्रियो से विवाह कर गृहस्थ-जीवन व्यत्तीतं करने लगे । एक दूसरा आपस में सिलने लगा। लडाई-रगडे का भाव धीरे-धीरे नष्ट होने लगा । उन्हे अब यह अमनुभव होने लगा कि जब हमे यहीं स्थायी रूप से रहना है, तब हिन्दुओ से मेल किये बिना सुख और आनंद की प्राप्ति नही हो सकती । इधर हिन्दू लोग अभी तक उन्हे लुटेरे और विदेशी समझते थे ; परन्तु उन्हें यहाँ बसते देख विरोध करना छोड दिया। फिर भी उनकी प्रकृति, उनका धर्म, उनका आचार-विचार अभी तक नहीं मिला था। दोनो जातियों शान्ति और सुख-पूर्वक रहें इसलिए इस बात




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