सूर : एक अध्ययन | Soor : Ek Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इसके पश्चात् दो-तीन शताब्दियों तक इन विचारों का
प्रावल्य रहा और समस्त भारत से शंकर के अष्ठेतवाद की प्रधानता रही ।
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बारहवी शताव्दी में फिर रामानुज ने विशिष्टाहेत एवं सध्वाचाय ने हेत-
वाद का प्रचार किया ! रामानुन जीवात्मा, जगत ध्रौर ब्रह्म को एक ही
मानते है । जीवात्मा और जगत ह्य से ही निके हे, कितु पृथक होकर,
विशिष्ट गुणों से समन्वित होकर ये कायं-रूप मे धरथक-पृथक परिणत
होते है । मध्वाचाय जीव, प्रकृति अर ईैश्वर को भिन्न-भिन्न मानते हे ।
इस समय तक प्ुसलमानों का न तो राजनीतिक और न
धामिक ही कोई प्रभाव पडा था। किन्तु इसके पश्चात् भारतीय साहित्य,
कला, संस्कृति एवं धर्स पर उनका प्रभाव स्पष्ट रूप से लक्षित होने लगा ।
मुसलमान लोग एकेश्वरवादी थे। उनमे सब बाते एक ही थी । एक
खुदा ; खुदा का एक पुन्न ; मुसलमान मुसलमाच सब एक । शांति भौर
विग्रह मे सब समय एकता उनकी नीति, न्याय ध्र धम्मं था। उनमे
न कोई जाति थी, न कोई पंथ । प्रारम्भ से जबकि वे आये तब कोई
दूसरा भाव था । धीरे-धीरे वह भाव बदलने लगा | अब सम्पत्ति-हरण
कर अपने देश को लौट जाने का भाव न था । इस समय तक वे अग-
णित हिन्दुओं को इस्लाम के ऋण्डे के नीचे ला चुके थे। कई हिन्दू-
स्रियो से विवाह कर गृहस्थ-जीवन व्यत्तीतं करने लगे । एक दूसरा
आपस में सिलने लगा। लडाई-रगडे का भाव धीरे-धीरे नष्ट होने
लगा । उन्हे अब यह अमनुभव होने लगा कि जब हमे यहीं स्थायी रूप
से रहना है, तब हिन्दुओ से मेल किये बिना सुख और आनंद की प्राप्ति
नही हो सकती । इधर हिन्दू लोग अभी तक उन्हे लुटेरे और विदेशी
समझते थे ; परन्तु उन्हें यहाँ बसते देख विरोध करना छोड दिया।
फिर भी उनकी प्रकृति, उनका धर्म, उनका आचार-विचार अभी तक नहीं
मिला था। दोनो जातियों शान्ति और सुख-पूर्वक रहें इसलिए इस बात
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