चतुर्थ पर्व | Chaturth Parv

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Chaturth Parv by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १७ ) “नौकरी के लिये कितनी दख्बौस्तं भेजी गई , परन्तु समी का उत्तर 'नहीं? के साथ मिला। कहो ? में स्या करूँ ¢ भाई, घबड़ाते क्यो हो ? घबड़ाने से कोई काम नहीं होता ॥ क्यों न घबड़ाऊँ ? तुम्हे तो घर से रुपया आता है। मौज से जड़ा रहे दो | तुम्हें क्या परवाह है ९? 'मुझे भी उतनो ही परवाह है, जितनी तुम्हें है । परन्तु तुम्हारी तरह में बहुत बड़ी नौकरी नहीं चाहता । में किसी भी नौकरी में जा सकता हैँ।! 'भाई, मे भी वही चाहता हूँ, पर कहीं मिले तब तो ।' “मिलेगी कैसे नहीं । (कहाँ मिल रही है ¢ “चलो, में तुम्हें फौज में भर्ती करा देता हँ। हजारों की संख्या में बिद्याधियों ने फौज मे अपना नाम लिखाया है । जब रोटी का प्रश्न सामने उपस्थित है तब मान और मयादा का ध्यान नहीं रहता ।? जब प्रौज में भर्ती होना ही है तब तुम्हारी सिफारिश क्या हे ९! | “कौन कहता है कि तुम मेरी सिफारिश करो ॥ “अच्छा, बतलाओ कि तुम अपने लिए कौन सा काम पसन्द्‌ कर रहे हो ¢ “मेने अपने लिये निश्चय कर लिया है ॥




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