धर्म और समाज | Dharam Aur Samaj

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Dharam Aur Samaj by सी. राधाकृष्णन - C. Radhakrishnan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धम की पाव्यक्ता १५ होना चाहिए । हम केवल ঘন दे के सिए गुड नष फरगे, पितु घम्यताके निए मुद्ध करेंगे; भौर इसलिए सुद्ध करेंगे कि जिससे मामव-बातति के प्रधिकतम हित के शिए धिदव के साधनों का सहरूपरी संगठन द्वारा विकास किया जा सके । इसके लिए हमे भन को शये सिरे घे क्षित कले प्रर विष्वार्सो तया कस्पनार्मो में कुछ सुधार करने की भावश्यकता होगी। विषय का तक प्रौर पंकस्प मानब-व्यक्ति के माप्यम द्वारा कार्य करवा है, बर्योकि मामव पासपास की परिस्थितियों की शक्तियों को समझ सकता है, उनके परिचालन का पहले से भनुमान कर सकता है भोर उन्हें मियमितत कर सकता है। विकास प्रव कोई ऐसी प्रनिवार्य भवितष्यता नहीं रहा है जैसे कि भाकाश में तारे भ्रनिवार्य रूप से प्रपने मार्ग पर चछते हैं। बिकास का साधन प्रव मानव-मन भौर संकल्प है। मई पीढ़ी फो प्राप्यारिमिक जीवन की पविश्वता भौर सर्वोच्चता, मानव-जाति के प्रातृभाव पौर प्षाम्ति-प्रेम की भावना के प्रादर्शों का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। युद्ध प्रोर नई व्यवस्था प्रोफेसर प्रार्नस्ड टॉयनवी मे प्पनी पुस्तक “दी स्टडी भ्राफ हिस्टरी म उन परिस्थितियों का विषेशम किया है, जिनमें सम्यताभों का जम्म होता है भ्रौर ये बढ़ती हैं ; भौर साथ ही उन द्शाओं का भी, जिनमें उनका पतन हो जाता है । सम्पतापों का জন্ন प्रौर विकास पूर्णतया किसी नाठि की उस्कृष्टता पर সঘঘা झासपास की परिस्थितियों की स्वतःचालित कारंबाई पर मिर्मर महीं हो सकता । सम्पवाएं मनुष्यों द्वारा भ्रपनी प्रासपास की परिस्थितियों के साथ कठिन सम्बल्धों में तालमेल बिठाने का परिणाम होसी हैं प्रोर टॉयनडो से इस प्रक्रिया को 'चुनोती पनीर भविभावन' के इंग की प्रक्रिमा माना है। बदलती हुई परिस्थितियां प्मार्जो के शिए चुनौती के रूप में साममे प्राठी हैं भौर उनका सामता करने के सिए जो प्रयस्त किया जाता है भौर जो कष्ट उठाए जाते हैं, उससे भी सम्यताभधों का অন্ন और विकास होता है। जीवन प्राणी द्वारा प्रपने-प्रापको परिस्थितियों के ध्नुकूस ढासते के भगवरत प्रमत्न का माम है। घव प्रासपास की परिस्थिष्ठियां बदलती हैं प्रौर हम प्रपने-प्रापको सफलतापूर्वक उनके भ्रनुकूछ ढास सेते हैं, सब हम प्रगति कर रहे होते हैं। परन्तु जब परिवर्तन इठनी शीध्रता से भौर इतने एकाएक हो रहे हों कि उनके प्रनुकूछत प्रपमे-प्तापको दास पाना धम्मव न हो, तब विनाश हो लाता है। यह विष्वास करने कै लिए कोई कारण महीं है कि भमुष्य मे बुद्धि का प्रयोग करना सीण सेने के कारण प्रयवा पृथ्वी पर झ्लाधिपरय मा लेने के कारण एस आवश्यकता से मुक्ति पा सी है, जो सब प्राणियों के ऊपर पझनिवाय रूप से शादी गई है। प्रारम्मिक सम्यताप्नों के मामलों में जहां चुनौतियां मौतिक भौर बाह्य दंग की होती थीं, वहां प्राजकस की धम्यताधों में समस्याएं मुस्यतया प्रतिशिकि भौर प्राध्यात्मिक ह) परव उन्नद्धि को मौतिक या तकनीकी प्रगति को दृष्टि से




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