शरीर विज्ञान | Sharir Vigyan

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Sharir Vigyan by पं. वी. वी. ए. आर. शास्त्री - Pt. V. V. A. R. Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सर शरीर थघिदान ! रपधडीलि टीन जी, पंचसहाशत । घाच्याश-नायु-तेज-जता और: पृथ्ची को पंचमंदामूत : कहते हैं | ः काश । खाली स्थान को कहते है इसी से शब्द-सिस्ता घर संशय आदि उत्पण ( शद्ठा होते हैं। कान खुंह श्रौर सासिका श्रादि थे छिद्दों से पूथफ्‌ू छूथक्‌ घान झाफाश के द्वारा ही छोता है । न चाथू शरीर के सस्पूर्ण घातु छोर मलानि पदार्थों को घायु ही चलाता है | इसी से एवांस, प्रश्वांस , सेएा, वेगघयूप्ति श्र इन्द्रिय समूदों के कार्य ससते हैं। रोमीं का खड़ा होना कस्प ( कॉपना ) शरीर में खुई गड़ाने की तरद ददे ्ौर झंगो का शीतल हो जाना झादि काय वायु छारादी दोते हैं । बलवान के साथ सहयुद्ध, झषिफ व्यायाम श्र व्ध्ययन ( पढ़ने ) उंचे स्थान से गिरने, चेन चलने, चोट लगने, संघन, राजिजाघरण चहुत पोश्स उछासे तथा घूमने, 'मलसूच-श्रधघो चायु-चसस ( दे ) डंफार-छींफ और थाछु- श्री के सेफने, खुखेशाक, मांस सडुझा, कोदो-सभा, सूंग, पू कै




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