शरीर विज्ञान | Sharir Vigyan
श्रेणी : आयुर्वेद / Ayurveda
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.25 MB
कुल पष्ठ :
68
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सर
शरीर थघिदान !
रपधडीलि टीन जी,
पंचसहाशत ।
घाच्याश-नायु-तेज-जता और: पृथ्ची को पंचमंदामूत
:
कहते हैं |
ः काश ।
खाली स्थान को कहते है इसी से शब्द-सिस्ता घर
संशय आदि उत्पण ( शद्ठा होते हैं। कान खुंह श्रौर सासिका
श्रादि थे छिद्दों से पूथफ्ू छूथक् घान झाफाश के द्वारा ही
छोता है ।
न
चाथू
शरीर के सस्पूर्ण घातु छोर मलानि पदार्थों को घायु
ही चलाता है | इसी से एवांस, प्रश्वांस , सेएा, वेगघयूप्ति
श्र इन्द्रिय समूदों के कार्य ससते हैं। रोमीं का खड़ा
होना कस्प ( कॉपना ) शरीर में खुई गड़ाने की तरद ददे
्ौर झंगो का शीतल हो जाना झादि काय वायु छारादी
दोते हैं । बलवान के साथ सहयुद्ध, झषिफ व्यायाम श्र
व्ध्ययन ( पढ़ने ) उंचे स्थान से गिरने, चेन चलने, चोट
लगने, संघन, राजिजाघरण चहुत पोश्स उछासे तथा घूमने,
'मलसूच-श्रधघो चायु-चसस ( दे ) डंफार-छींफ और थाछु-
श्री के सेफने, खुखेशाक, मांस सडुझा, कोदो-सभा, सूंग,
पू
कै
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