कला क्या है | Kala Kya Hai
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
157
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ठ )
'टाल्स्टाय की ्रतदुं ष्टि की कल्पना प्रत्यक्षतः शरे ने की थी, क्योकि उनके
अनुसार कला “गर्व और एेच्वरयं के मन्दिर को सरस्वती कौ ज्वाला में दीप्त श्रगुर-
पुञ्ज से भर सकती है |,
जिन विचारों को फ्लेचर श्रौर ग्रे ने पहले व्यवत्त किया था, उन्ही को
टाल्स्टाय ने समन्वित किया, विशद किया, श्रौर स्पष्ट किया और उन्होंने विचारों
का संकलन इस प्रकार किया है कि साहित्य में प्रथम बार एक तर्काधृत,
विन्वसनीय एवं पूणं सिद्धांत उपस्थित हो गया, जिससे कला का संवंध--श्नन्य
मानवी क्रिया-कलाप से और सामान्य जीवन से--समझ में आ जाता है । यह
वताना भ्रावन्यक है कि जब टाल्स्टाय कहते हे कि एक कलाकार “जिन
भावनाओो के बीच रह चुका है उन्हें अन्यों को हस्तान्तरित करता है' तो
वस्तुतः वे इसमें विश्वास करते हे । यदि 'भावनाश्रों' शब्द की व्याख्या अ्रपेक्षित
है तो वह उनकी कला की परिभाषा के ठीक पहले के पैराआफ में प्राप्य है
जहाँ कहा गया है : 'जिन भावनाओं से कलाकार श्रन्यो को प्रभावित करता
है वे अनेक प्रकार की हे--बहुत सवल अथवा बहुत दुर्बेल, बहुत महत्वपूर्ण
था एकदम तुच्छ, बहुत वुरी या बहुत अच्छी : देश-प्रेम की भावनाएँ, नाठक में
वणित आत्मासक्ति रौर भाग्य एवं ईइवर के प्रत्ति समपंण, उपन्यास में
वर्णित प्रेमियों के उल्लास, चित्र में वणित कामासक्ति, विजय-सेन्य प्रयाण
मे वणित साहस, नृत्य द्वारा उत्थित श्रानंद, एक हास्यकथा द्वारा उद्भूत
विनोद, एक संध्याकालीन दृश्य या लोरी गीत द्वारा प्रदत्त शांति की भावना, या
एक सुन्दर तंत्र-क्रिया द्वारा जनित आशंसा की भावना--यह सव कला है ।*
इस प्रावकथन को लिखते समय मेने श्री ह्य হল फॉसेट की एक किताव
£खोल रखी थी, जिसमें कला संबंधी टाल्स्टाय के विचारो पर विमर्शार्थ ३० पृष्ठ
खपाए गए ह ओर मैने इसमे एक श्रसाधारण वक्तव्य पाया है कि टाल्स्टाय
“भावनाः कौ परिभाषा करने का प्रयत्न इस वाक्यांश से करतं हं : “उनकी धार्मिक
श्रतदु ष्टि से निस्सृत ।' प्रत्येक पाठक स्वयं देख लेगा कि वे शब्द एक परवर्ती
पृष्ठ से लिये गए हे । वहाँ टाल्स्टाय कला की परिभाषा विल्कुल नही कर रहे
है बल्कि कह रहे हे कि लोगो ने कला की उस क्रिया को सदेव विशेष महत्व दिया
है, जो 'उनकी धामिक अंतःदृष्टि से निस्सृत है ।” इससे उन लोगों को संशयग्रस्त
होने की आवश्यकता नही जो इस सिद्धांत को उसी रूप में स्वीकार करते हैं
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