भारतीय पूरैतिहासिक परातत्त्व | Bharatiya Puraitihasik Puratatva

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Bharatiya Puraitihasik Puratatva by धर्मपाल - Dharmpalपन्नालाल - Pannalal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय 1 मृमिका कुछ वर्षं पहले तक भारतीय पुरातत्व का भं केवल पुरालिपियो का एवं कला-इतिहास और सिक्कों फा अध्ययन ही मान्रा जाता था। परन्तु अव, विशेष रूप से स्वतन्त्रता के वाद, प्रागेतिहासिक भोर पुरेतिहासिक पुरातत्व पर इतना अधिक महत्व दिया जाने लगा है कि आजकल पुरातत्व प्रागेतिहासिक अध्ययन का पर्याय हो गपा है। सिनन्‍्धु सभ्यता 1924 मे ज्ञात हो चुकी थी, और यह अनुमान था कि यह लगभग 1500 ई० पू० तक जीवित रही, परतु ऐतिहासिक काल केवल पाँचवी सदी के लगभग प्रारम्भ होता है । पिंघु सभ्यता के अन्त से पाचदी शताब्दी ई० पूर्व के काल की सस्क्ृतियो के बारे मे कोई प्रामाणिक जानकारी न थी। इसीलिए दइप्ते अन्धयुग कहते थे । 1947 के बाद मुख्य उत्खनन प्रागेतिहासिक एवं पुरंतिहासिक स्थलों पर ही हुए । फध्चत आज यह तथाकथित जन्धयुग काफी प्रकाशमान हो चुका है। जल्कि इससे पूर्वकालीन पाषाण-कालके बारे मेभी आज पहले को भपेक्षा कही भधिक्‌ जानकारी है । अब यह स्पष्ट हो गया है कि ऐत्तिहातिक और साहित्यिक स्रोतो के आधार पर बनाया गया इतिहास भारत मे मानव के भुतकाल का एक बहुत ही छोटा सा अश है। विशेषत, पिछले बीस वर्षों की खोजो से यह प्रकट हो गया कि भारतीय मानव के उस कही लम्बे इतिहास का पुननिर्माण करने के लिए, আ पाँचवी शी ईसा पूर्व से लाखो साल पहले तक फीला है, पुरातत्व को बहुत से दूसरे विषयों और तकनीको का सहारा लेना पड़ेगा | विश्व मे भाज पुरातत्व एक बहुमुखी ओर बहुविषयक शासुत्न के रूप में विकसित हो रहा है । पिछले दस साल में रेडियो कार्दत तिथिकरण प्रयोगशाला के प्रसविदा के धनिष्ठ सपक में आने से भौतिकी त्तथा अन्य विज्ञान भारतीय पुरातत्व के बहुत नजदीक आये हैं। प्रागैतिहासिक काल के पु]नर्निर्माण के लिए केवल भौतिक अवशेषों और उपकरणों का सहारा लेना पढता है। ये अवशेष पुरालेखों की




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