रीतिकालीन कविता एवं श्रृंगार रस का विवेचन | Ritikalin Kavita Avam Shringar Ras Ka Vivechan

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Ritikalin Kavita  Avam Shringar Ras Ka Vivechan by डॉ विश्वनाथ प्रसाद - Dr Vishwanath Prasadधीरेन्द्र वर्मा - Dheerendra Vermaभगीरथ मिश्र - Bhagirath Mishr

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डॉ विश्वनाथ प्रसाद - Dr Vishwanath Prasad

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धीरेन्द्र वर्मा - Dheerendra Verma

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भगीरथ मिश्र - Bhagirath Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २४ ) पूर्ण तत्थ है। ठसकी उपेद्या करना खीवन के विमुख होना है 1 उसके निपेष की चर्चा करना प्रत्यच्च सत्य को अस्वोकार फरने के समान बा इर है। यह निविवाद है कि जोवन में श्रद्धार सेघन शौर साहित्य में श्रश्नार-धर्यन, दोनों ही अवसरों पर श्स्नार मावना का उन्नयन अनिवार्य है। न शङ्कार रस सम्बन्भी काव्य ही उपेत्णीय है झौर न उसके पर्णी थता कविसन हो निन्‍्दा के पान्म हैं। प्रेम की मनोदशा का थर्णन ही श्रद्धार साहिस्य है| प्रस्युत सामग्री उपलब्ध करने फे लिए मैने स्वदेश, विदेश के झनेक म्रन्यों से सहायता ली हे । उनके रचियताओं में कुछ स्पर्गशोक में हैं और कुछ इसी लोक में | प्रथम के प्रति अत्यन्त विनप्नतापूषक मैं मतमस्तक हूँ শশা द्वितीय फे प्रदि कृतशतापूर्वक आभार प्रदर्शित करना अपना घर्म मानसा हूँ | ६ प्रस्युत समौचा करने मे मुम गुखवर प° जगन्नाथ जी तिवारी, श्देय ঘালু হুলানহাঘ জী, आरद्रणीम सेर भी कृहैपालाललल जो पोहार तथा अपने मित्र भी प्रभुदयाशु जी मीवल से अपार सहायता प्राप्त हुई हे। उन्हें धन्यवाद देकरः मैं झ्पना मार हल्का नहीं करना चाहता, परन्ठु उनके प्रति कृठशता प्रकाशित करना एक गुरुतर कर्सव्य-्पाशन सम मता हँ। गुरूवर भी इरिहर नाथ टणडन के निर्देशन में तो इसको लिखा ही गया है | अत' यह यस्ठु उन्हीं की है और उन्हीं को सादर समपित है । दारहसैनी कोलेस ) विनीव-- भरलीगव्‌ । राजेश्वर प्रसाद चमुर्वेदी




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