इतिहास | Itihas

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Itihas by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सरला से त्रीर न रहा गया तो उसने कहा--तुम बच्चे को बचाना चादते हो कि नहीं ! सुमेर चुप रहा । सरला की उद्दिग्नता ने एक वार फिर उससे जवाव तलब किया -- तुम बच्चे से हाथ धोने दी पर तुले हो क्या ? सरला की ्रावाज भर्थयी हुई थी । सुमेर इस बार भी चुप रहा । फिर घीरे से उठा श्रौर जाकर सरला के झ्रॉसू श्रपनी घोती के छोर से पॉछुने लगा ओर बोला--रानी, तुमसे मेरी कोई वात नहीं छिपी है । सरला ने उसके सीने में मु हु घेमाते हुए कह्दा--मैं जानती हूँ....... लेकिन हमें द्रयने नरेश की जान तो वचानी ही होगी । में उसे इस तरह मरने नहीं दे सकती | --धीरे वोलो सरला; नरेश जग रहा है । --द्बर और क्या बाकी है । तुम उसकी ग्रखें नहीं देखते £ --उसकी द्रॉर्खो में मौत का डर है ; लेकिन उसकी नव्ज चल रही है । ्ह --द्रमी उसमें जान बाकी है, घबरा मत, अभी वदद जियेगा ' उम्मीद मत दारो । -खुम जाश्रो डाक्टर को बुला लाथ्ो, किी तरद बुला लाश्ो, हाथ जोड़कर, पैर पड़ कर-- --ठुम वात नहीं समभतीं सरला । -मैं सब समभाती हूँ ! --तुम कुछ नहीं समकतीं । इस वक्त कोई डाक्टर बिना पैसे लिये वात नहीं करेगा-- --उसके भी बाल-बच्चे होंगे... --दहां दोंगे, जरूर दोगे, लेकिन वदद उसके बच्चे होंगे । नरेश उसका बच्चा नद्दीं दै । श्छ




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