अवधी व्रत - कथाएं | Awadhee Vrat Kathayen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शीतला-अष्टमी यह पर्व अवध क्षेत्रके गाँवोमिं बैल बेशाक्ष जेठ और आपाड़ महीनों- बी इृप्ण अप्टमीको प्रायः सर्वत्र मनाया जाता है। गाँवकी स्त्रियाँ इस प्रतको बड़ी ही श्रद्धा भक्तिसि करती हैं बर्योकि उनका अटस विष्वा है कि प्रीष्मकालीन रोगसे मुक्त रहनेगे श्िए शीतछा माताकी कृपा अनिवार्म है। सिशेष रूपसे चंचक ( दीतछा ) को तो शीतवल्ा माताकी अकृषपासे ही अन्‍्मा माना जाता है भओोर यही कारण है कि गाँवोंमिं खेचकको शीतसा! 'महरानी या देवी के मामसे णानते हैं। शीतछा माठा जुड़ानी रहैं फिर कौर्मो रोगुवोषु भगीने ने आई-के विदव!सपर क्षीतला मातापर झसल चढ़ाता, पूजा करना और उनका निर्माल्प छाकर रोगीको पिछाना इत्यादि बातें सामान्य रीतिसे गाँवोंमें देखी जाती हैं। धरमें रोगके था जाने पर शोतरा माताको 'ुड़वामे के छिए उनकी मण्डपीफो पामीसे भर देवे हैं। कूपे पहमना बास-नाखूम कटवाना, यात्रा करना या किसीके यहाँ जाना छोौंकना-वयधारमा इत्मादि तमाम यातें निपिद्ध हां जाती हैं। घेबक हो जामेको शीतरछामाताका आगमन मानत॑ है और उनको झीतल करनेक॑ सिए समी प्रयस्न करते हैं। उस समय रोगीके पास तीप जछ्का कऊूस ओर नीमके पत्ते रखते हैं। इस प्रकार भीगे हुए नीमके पत्तोंको पोड़ी-योडी देरमें रोगीके उपर नवे है जिसकी शीवछ्ठतासे रोगीकों आराम मिलता है। घीवछास्तोत्र्मे सीतछामाताके स्वरूप प्रभाव इत्यादिके बारे छिक्षा हमा है जिसके झनुसार घीतला-अप्टमी 4




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