अबलाओं पर अत्याचार | Ablao Ka Atyachar

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Ablao Ka Atyachar by जी. एस. पथिक - G. S. Pathikरामरख सिंह सहगल - Ramrakh Singh Sahagal

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रामरख सिंह सहगल - Ramrakh Singh Sahagal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( £ ) | न्को भी चोन दी के समान किसी धाम्मिक कार्य में भाग लेने का अधिकार नहीं था | वे महा नीच और अपवितन्न समझी जाती थीं । . अरब-निवासी अपनी स्त्रियों को बहुत ही बुरी तरह रखते थे । लड़की के पैदा होने पर वे उले ज़िन्दा ही दफ़न कर दिया करते थे ! जिसके यहाँ लड़की पेदा हो वह समाज में बड़ा कम्बरूत व्यक्ति समझा जाता था और लोग उससे धृणा करते थे । श्रपने देवताश्रों के सामने श्ररव के लोग लड़कियों 'की क्ूर्बांनी कर दिया करते थे । जो लड़कियाँ लावारिस होती थीं, उन्हें -जवान होने पर, उस व्यक्ति से अवश्य ही विवाह करना पड़ता था, जो उनका आश्रयदाता अर्थात्‌ सर-परस्त होता था। एक पति की कई ख्रियाँ और एक स्त्री के कई पति हुआ करते थे !! स्पाटां देशर्मेजो खी दुबल समी जाती थी श्रथवा जिसके वच्चे -मोटे-ताज्ञे पैदा नदीं होते थे, उसे उसका पति जान से मार दिया करता था! स्त्रियों को बात-बात में जान से मार देने की प्रथा चहाँ अ्रधिक अचलित थी। इस कुप्रथा के कारण स्त्रियों की वहाँ इतनी अधिक कमी हो गईं थी कि, एक खसत्री को कई पुरुषों की पत्नी बन कर रहना पड़ता था । र उसके निकम्मी हो जाने पर वह मार दी जाया करती थी । स्पारैन लोग अपनी स्री को अपने मित्रों को उघार दे देना कोई असाधारण वात नदीं समस्ते थे । समय पड़ने पर वे लोग ख्तियों को किसी महाजन के - यहाँ गिरवी रख कर क़र्ज्ञ भी ले सकते थे । स्पार्य मे यह मी अनुचित नहीं समस जाता था कि यदि अतिथि इस योग्य समझा जावे, तो पति को अधिकार था कि वह अपनी पत्नी द्वारा भी उखकी सेवा करे !! जब कोई पुरुष, बुद्धावस्था को प्राक्त होता था तो चह अपनी पत्नी के लिए एक सुन्दर ओर जवान सज्जन को अपने स्थान `




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