डॉ० अम्बेडकर की न्याय की अवधारणा | Dr Ambedakar Ki Naya Ki Awadharana
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
272 MB
कुल पष्ठ :
360
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)1800 সি.
हिन्दुओं के विरूद्ध सामाजिक लड़ाई लड़नी पड़ी | डा0 अम्बेडकर विचार और व्यवहार से
संतुलन बनाकर चलने वालों में से थे | उनकी गतिशीलता के सिद्धान्तों का आधार यही था कि
संसार में कुछ भी जड़ नहीं है, कुछ भी शाश्वत नहीं और कुछ भी सनातन नहीं । हर चीज
परिवर्तनशील है। परिवर्तन मानव और समाज का धर्म है | उनका कथन था मानव की पीड़ाओं
में सामाजिक परिस्थितियों का बहुत बड़ा हाथ होता है | उनका आदर्श ऐसे समाज की रचना
करना था जो समता, स्वतन्त्रता और भातृत्व पर निर्भर हो | एक आदर्श समाज में अनेक वर्ग
विद्यमान रहे और एक दूसरे के हितों को समझें और सहयोग करें | समाज को समस्यायें
उलझानी नहीं, सुलझानी चाहिये | इसके लिए वे सामाजिक चेतना पर जोर देते थे जिसमें वे
सभी अधिकारों को, चाहे वे मौलिक हो या सामाजिक, संरक्षक मानते थे। उनका कहना था कि
सामाजिक प्रगति तथा सामाजिक स्थायित्व विभिन्न वर्गो के बीच लचीलेपन ओर बराबरी के
` अधिकार पर आधारित होता है। वे स्थायित्व के महत्व को मानते थे किन्तु परिवर्तन की बलि `
चढ़ाकर नही, जबकि परिवर्तन आवश्यक -हो | समन्वय जरूर हो परन्तु इसके लिये सामाजिक
न्याय का गला नहीं घोट दिया जाना चाहिये। सामाजिक स्थायित्व से उनका आशय भारतीय
समाज में पनपी जाति प्रथा के निषेध से है।
डा. अम्बेडकर चाहते थे कि सदियों से शोषित तथा दलित जन साधारण के साथ
न सिर्फ सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक आधार पर समानता का बर्ताव किया जाये बल्कि
उन्हें तब तक विशेषाधिकार भी दिये जाये जब तक राष्ट्रव्यापी समानता का लक्ष्य प्राप्त न हो
जाये। चूँकि उन्होंने स्वयं सामाजिक, आर्थिक अयोग्यता तथा अपयश का कड़वा घूँट पिया था
इसलिये उन्होंने दलितों के सम्पूर्ण वंचन तथा अयोग्यताओं का अन्तर्राष्ट्रीयकरण कर दिया।
उन्होंने दलितों के लिये आर्थिक समानता तथा वास्तविक राजनैतिक. अधिकार प्राप्त करने हेतु
एक वैकल्पिक रणनीति का अवलम्बन किया। इसके अन्तर्गत उन्होंने कृषि के सामुदायिकीकरण
तथा उद्योगों के राष्ट्रीयकरण का प्रयास किया और एक दलित प्रधान राजनेतिक दल का गठन
भी किया। उन्होने दलित समाज मे जन्म लेकर जाति तथा पंथ का वैज्ञानिक विश्लेषण करते हुये.
तक॑संगत ढ़ग से उसकी अनुपयोगिता साबित की तथा दलित एवं वंचित वर्ग के सम्मान ओर
न्याय के लिये संघर्ष किया। उनका विचार था किं सीमित राजनैतिक अधिकार लोकतंत्र का
आधार नहीं तैयार कर सकते बल्कि मेल-मिलाप तथा स्वस्थ नैतिक सिद्धान्त ही लोकतंत्र के
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