उज्जवल नीलरस | Ujjwal Nilras

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Ujjwal Nilras by केशव कालीधर - Keshav Kalidhar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तुम भी चाहो तो द | इस डोर को खींच लो और किसी ऐसे पोखर की तलाश करो जो सतहो पर छलछलाता रहता है और हर किसी को वह वापस कर देता है ৃ जो बह बह कर उस तक । आता रहा है-- : भागती हुई यात्रा के साक्षी ये पोखर ` किसी को असमर्थ नहीं छोड़ते कहीं कुछ नहीं जोड़ते ! {` जोड़ना क्या ज़रू री है उस अंधे पानी और फाँसी की तरह लंटको | | ২. अधूरी डोर का ? | छोटा-सा संकल्प ।। एक धंसती हुई याता पर छोड देता है | सिफं खर खर“ खर खर खर खर এ और रहस्यभरे हिचकोलों को ७27 55 को निरर्थक झाँकती हुई टकटकी ! ..




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