पंडित बालकृष्ण भट्ट | Pandit Balkrishna Bhatt

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Pandit Balkrishna Bhatt by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला श्रध्याय भारतेंद युग ओर आधुनिक हिन्दी साहित्य का विकास हिन्द गद्य मे परिमाजेन :- हिन्दी ग में परिमाजंन से हमारा श्रथं खड़ी बोली गद्य के परिमाजंन से है । ब्रजभाषा का गद्य इतना भाव व्यंजक और सशक्त न बन सका कि वह साधारण तः भाव प्रकाशन का माध्यम बन पाता, इसलिए वह अपने शैशव में ही समाप्त हो गया । खड़ी बोली का गद्य हमें अवश्य एक विकासोन्मुख क्रमबद्ध कड़ी के रूप में प्रात होता है। यह तो सत्य है कि खड़ी बोली उतनी ही. प्राचीन है जितनी ब्रजभाषा और यह भी सत्य है कि ब्रजभाषा की उन्नति के. प्रखर ताप के समय खड़ी बोलीं कहीं पड़ी विकास के उचित अ्रवसर की खोज में थी | पद्य के रूप में खड़ी बोली के अंकुर हमें अमीर खुसरो जेसे प्राचीन कवि की रचनाओं में मिल जाते हैं किन्तु गद्य के रूप में उसका विकास बहुत ' बाद की बात है। विद्वज्जन खडी बोली गद्यका प्रारम्भ श्रकबरके समयसे मानते हैं और गंग कवि की “चंद-छंद-बरनन की महिमा नामक गद्य पुस्तक /. को खड़ी बोली गद्य की पहली पुस्तक बतलाते हैं । गंग की इस पुस्तक में खड़ी बोली के गद्य का क्‍या रूप था इसे स्पष्ठ करने के लिए एक उद्धरण देना अप्रा- संगिक न होगौ :-- _ 8 “सिद्धि श्री १०८ श्री श्री पातसाहिजी श्री दलपत जी श्रकबर साहिजी आम खास तखत ऊपर विराजमान हो रहे । और ग्राम खोस भरने लगा है जिसमें तमाम उमराव आय-भ्राय कुरतिश बजाय जुहार करके अपनी-अपनी बैठक ` पर बठ जाया करें अपनी-अपनी मिसले से । जिनकी बैठक नहीं सो रेसम के रस्से में रेसप्र की लूमें पकड़-पकड़ के खड़े ताजीम में रहैं ।




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