बिचित्र-विचरण [प्रथम खण्ड] | Bichitra Vichran [ Vol 1]

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : बिचित्र-विचरण [प्रथम खण्ड] - Bichitra Vichran [ Vol 1]

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी - Jagannath Prasad Chaturvedi

Add Infomation AboutJagannath Prasad Chaturvedi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
मत्पर) ` १२ प्मौर टदलने शत । मेरा खेड़ा होना भौर टद्रएना ইন कर उन खड चायको सीमानयौ। ˆ ~ + ^ न्भ “5 चसुथ परिच्छेद 1 . द मी ~ ? न्व „ ., गि ,„ = সততা डोकर मैं चारों भोर देखने सगा। अझ्ा ! क्या म्मोहर दृश्य है! कया रसमपोय स्पान है | भांखें वप्त नहीं होतीं--लो चा- ध्ता है निह्रताहो २४ । क्या अनोखी , छटठा উ सारा देशो वेमन सा खिला इुभा है। चोकोर खेंतोंकी वद्याद फलको क्यारि- वैसे किसी तरए कम नहीं है। नाना प्रकारके हों को कुछ निराशीही शोभा है। सात फटसे ऊंचे यहां हचहो नहीं हैं। मेरो वाई तरफ राजधानी ड्रै--भष्ठा केसा झन्दर नगर है! नगर यया है--खासा थिवेदरुका, परदा है। देखतेही भन सुग्ध हो छलाता है। है भोचादिसे निवटमैके लिये तेयीयत वैचन थो।' दो दिनर्स निवंटा नहीं । अब भीर रोक न सका। मन्दिरमे घम गया और किथाड्‌ वन्द करके दरीं दइचका दपा कदो चलता द {जि लध्ीरं चार हाथ खम्यी धो इसलिये भीहर लागेसे कुछ कष्ट नहीं इचा। पमौ मलौ कारवाई वस मैंने एकद्दी दिनको थो सो आशा है कि पाठरंगण मेरी दशा विचार कर उसा दरेंगे। फिर तो' मैं खर तड़ची उठता भौर याधशरह्दी नि्थिन्त होता।' दो मेइतर र्घा सप्ष भ्रावर शाफ कर लाते घे। बस दस विधयको यद्ध समाप জহলা সু । ঘাতনা ! লাহা লীষ্ঘ মন सिकोड़िये तीव्र समालोच को हो के लिये मैंने यद्द गोत गाया है। क - 4 भौचादिरे दुषो पाकर वाटर निकल आया। इधर रदा হাস মী অতি उतर घचुकेथे। घोड़े पर चदके भेयी शर रामे यथे पर ईग्रमे वटु कुथलकी ! यद्यपि घोडा ुयिद्धित'था तधापि वह मेरे पर्दताकार धरोरको देख कर मढ़का और अपने पिद्ले पैसरेंसे खड़ा होगया। 'सधारान भो छोड़े पर चढ़ना जागते ~ ध, = ( ३ )




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now