जनसँख्या | Janasankhya

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एस. एन. अग्रवाल - S. N. Agrawal

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धीरेन्द्र वर्मा - Dheerendra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय २ जनसंख्या में वृद्धि और कम विकसित देशों का आधिक विकास टामस राबटं मान्यम जनसंख्या वृद्धि को नापसन्द कसे ये भौर उन्होने उसे सामान्य निपेनत्ता का मृषट्य कारण बताया था । उनका यह्‌ भौ मत यारिसामान्य नर्नोके दतो को सामाजिक सुधारो मे समाप्त नही किया जा सकता है, कंयोकि ईसं साधन द्वारा प्राप्त कोई भी लाभ जनसल्या में नई वृद्धि के द्वारा बढ्ठत ही अत्प समय में चूस या समाप्त कर लिया जाएगा | आमुतिक लेखक माल्यस के अति-सरलीकृत तर्को का खण्डन करते हैं, पर इस युवित से सहमत हैं कि जनसंख्या की वृद्धि कुछ परिस्थि- नियमों में सामाजिक तथा आशिक विकास म बाधा उन्न करती है। उदाहरण के बिए भूमि तथा अन्य प्राकृतिक साधतों को कमी, पूजी की कमी तया प्रशिक्षित एवं मोग्य जनशवित की कमी से बढते हुए उत्पादन तथा तोबु गति से दती हुई जतसश्या में सनुलन स्थापित करना कठिन हो जाएगा। दूधरी,ओर यह भी तर्क किया जाता है कि कुछ परिस्थितियों में जमसंख्या की विपुल वृद्धि आधिक विकास के लिए निरिचित रूप मे लाभकारी हो सकती है | ऐसा उन देशों मे हो सकता है, जहा प्राकृ- तिक साधनों के भारी भण्डार समुित जनशक्ति के अथवा बृह़त उद्योगों के लिए ययेप्ट बाजारों के अभाव में अविकतित पड़े रहते हैं इस प्रश्न का कोई सामास्य उत्तर नही है कि किस प्रकार से जनसख्या की वृद्धि चनेमाधारण के भो तिक कल्याण को प्रभावित कर सकती है। इसका उत्तर बहुत-सी परिस्थितियों पर निर्मेद करता है तथा किसी देश की जनसँस्या को समस्या को समभने के लिए इन सभी परिस्थितियों का निरीक्षण करना पढ़ेगा। वर्तमान युग में विकसित तथा कम विकसित देशो की प्रासंगिक परिस्थितियों मे बहुत अन्तर है। अफ्रीका, एशिया तथा लेंटिन अमेरिका के बहुत से कम विकत्तित देशों में प्राकृ- तिकः माधनों कैः विशाल भण्डार है, जिद अभी तक दुहा नही गया है, लेन इनको विकसित करने योग्य पूजी तथा प्राविधिक रूप से शिक्षित जनशवित का अभाव दै । विश्व के महान ओंदद्योगिक संयत्र गूरोप तथा उत्तरी अयेरिका के कुध् देशों में केद्धित




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