प्रतिनिधि मंचीय नाटक | Pratinidhi Manchiya Natak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
186
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about शास्त्री एवं अनिल - Shastri Evam Anil
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ड्न्द्र
सुपर्ण
|
न्द्र
सुपर्णे
इन्द्र
सुपर्ण
इद्र
षद
सुपर्ण
इन्द्र
इन्द्र
महाराज } रसा नदी के उस पार पहाड़ की सारी
गुफाभ्रौं पर मंडराता रहा । मूला-प्यासा भटकता
रहा, लेकिन पाणियों का कुछ भी पता न लग सका |
तुम भ्राज तक कभी निराश नही लोड ।
इस बार तो मैं खाली हाथ ही लौट सका हु |
घूमने से तुम्हारा स्वास्थ्य ठीक हौ गया |
(घवडाकर) देवराज ! ऐसी' '*'तो' **** कोई“ *
बात नहीं है 1
लगता है, तुम्हारी अच्छी भाव-भगत हुई है ।
महाराज, मैं सच कहता हूं, मुझे कोई नहीं मिला ।
तुम राष्ट्र भक्त हो, तुम पर हम हमेशा भरोसा
करते आाये हैं । तुम मूठ क्यों बोलने लगे ?
हा, देवराज मँ कभी मूठ नहीं बोलता ।
(कहता हुप्ना लड़खड़ाता है)
। | (देखकर) सुपर्ण ! तुम परेशान क्यों হী?
ऐसी तो कोई बात नहीं है 1
तुम्हाये मुहं पर डर मंडरा रहा है ।
(संभल कर) नहीं तो ।
तुम्हारे पाँव भी लड़खड़ा रहे हैं ।
* (सुपर्ण काँपने लगता है)
देवताभरों ! श्राप समी देख रहै है, हमारे सत्यवादी
सुपर्ण को । इनका सारा शरीर कांप रहारै, मुह
User Reviews
No Reviews | Add Yours...