प्रतिनिधि मंचीय नाटक | Pratinidhi Manchiya Natak

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Pratinidhi Manchiya Natak by शास्त्री एवं अनिल - Shastri Evam Anil

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ड्न्द्र सुपर्ण | न्द्र सुपर्णे इन्द्र सुपर्ण इद्र षद सुपर्ण इन्द्र इन्द्र महाराज } रसा नदी के उस पार पहाड़ की सारी गुफाभ्रौं पर मंडराता रहा । मूला-प्यासा भटकता रहा, लेकिन पाणियों का कुछ भी पता न लग सका | तुम भ्राज तक कभी निराश नही लोड । इस बार तो मैं खाली हाथ ही लौट सका हु | घूमने से तुम्हारा स्वास्थ्य ठीक हौ गया | (घवडाकर) देवराज ! ऐसी' '*'तो' **** कोई“ * बात नहीं है 1 लगता है, तुम्हारी अच्छी भाव-भगत हुई है । महाराज, मैं सच कहता हूं, मुझे कोई नहीं मिला । तुम राष्ट्र भक्त हो, तुम पर हम हमेशा भरोसा करते आाये हैं । तुम मूठ क्‍यों बोलने लगे ? हा, देवराज मँ कभी मूठ नहीं बोलता । (कहता हुप्ना लड़खड़ाता है) । | (देखकर) सुपर्ण ! तुम परेशान क्यों হী? ऐसी तो कोई बात नहीं है 1 तुम्हाये मुहं पर डर मंडरा रहा है । (संभल कर) नहीं तो । तुम्हारे पाँव भी लड़खड़ा रहे हैं । * (सुपर्ण काँपने लगता है) देवताभरों ! श्राप समी देख रहै है, हमारे सत्यवादी सुपर्ण को । इनका सारा शरीर कांप रहारै, मुह




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