राष्ट्रीय स्वाधीनता और प्रगतिशील साहित्य | Rashtriy Swadhinta Aur Pragatisheel Sahitya

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Rashtriy Swadhinta Aur Pragatisheel Sahitya by रामेश्वर शर्मा - Rameshwar Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मनोविश्लेषण शास्त्र और हिन्दी आलोचना १५ फ्रामड साप्ट स्वीडाएर बरते हैं कि इस प्रकार के यौन-सम्बन्धों को सामा- जिक नैतितता मान्यता नही देती । अस्तु ज्यो ही व्यक्ति की सामाजिक चेतना जागरूक हुई कि इस प्रकार की भावनाएँ नीचे तल में अर्थात्‌ अवचेतन में उतरना प्रारम्भ कर देती ह + पट्‌ पर दे एक सीमा! तक घुटती रहती है. और उनकी यद्‌ घटन उन्हे मानसिक ग्रथियों के रूप मे परिवर्तित कर देती है। इस मानसिक प्रन्थियों कै प्रकीटीब रण के लिए फ्रायड ने कुछ रास्तो वी कह्पना मी है, वे हँ-- कला सेजन, स्वप्म, दैनिक जीवन की झूलें तथा विक्लेप आदि) फायड के সন नुमार मत्रिनि की अवस्था से विजातीय रतिं फी अवस्था तक पहुँचने के बीच मे स्वब-धर्गीय रति की स्थिति आती है । फ्रायड के इसी भूल भनोविज्ञान को दृष्टि भे रखते हुए हमे उनके লা सम्बन्धी विचारों को जानना है । जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि फ्रायड के अनुसार कला दमित तथा गसामाजिक कुण्ठाओ का श्रेष्ठीकरण-कृत स्वरूप है । सामाजिक मान्यताओं के कारण हमारा चेतत सन हमारे मन की अविवेकशील क्ाप्र-भावता को दक्षाता रहता है। यही दर्मित काम वासना मानसिक प्रन्यियो का रूप धर अवचेतन में जम जाती है, और बहा से अपने निकास का अहतिश भ्यत्व बदती रहती है। इस प्रयत्न में उसे सख्मध्टिगद नैतिक अह से समझौता करना पड़ता है। फलस्वरूप उनके स्वरूप भे काफी अन्तर हो जाता हैँ। क्षत्त प्रस्थियाँ प्रतीक रूप मे प्रकट होकर स्पप्न मे छावाचित्रों तथा कविता भे भाव-चित्रों की सृष्टि करती हैँ | हिन्दी के महाकवि तुलसीदास जहाँ भी सौन्दर्य का चित्रण करते हैं वे केवल मावचित्र प्रस्तुत करके रह जाते हैं, जसे, छवि गृह दीप-शिखा जनु बरई' या 'शोभा रणज्जु मदर सिगारू' वाला रुपक । फ्रामडवादी आलोचक इसे अतृष्त-काम-प्रन्‍्थि की ही मशिभ्यक्ति कहेगा । फल्ता के उद्गम पर सनोविश्लेषक्त फ्रायड का दृष्टिकोण हम देख चुके हैं। उसके स्वरूप के सम्बन्ध में उसका भत है कि मानसिक प्रथियों क्री इस प्रकार की श्रेष्डेकरण कृत त्भिव्यक्ति समन को केवल एक झूठा भाश्वासन है, कल्पना है, विश्वम है, धोखा है। इम प्रकार का समझौता ग्रथियो फी अमिव्यतित का प्रघक पथ न होकर एक प्रकार का भुतावा है। कारण यही है कि आखिर हम हैंतो सामाजिक प्राणी हो न) अस्तु अन्तर्तेवुत्तियो का दभन होने पर भी हम उससे विवज्ञतापूर्ण समझौता बनाये रफ़ना चाहते हैं। अतः मानसिक ग्रन्थियों की इस प्रकार हुई श्रेष्टीकरण-बूत्त अभिव्यक्ति न॑ तो उसकी वास्तविक और प्रकृत अमि- व्यक्त है और भ उछसे इन प्रवृत्तियों को सन्‍्होष ही होगा, न उपभोग हो 1 मस्तु फ्रायड ने इसीलिए बजा को एक विश्वम कहा है। >पृषन०४६ 110च्वंत्र बार ৫৩৩৫ णपि एह 16 ज 00०४5 50 8৮1৩ চে सटा) ४८ इणः ण 1631) 16ए७००४४, ७७३ ক 1 १




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