नैतिक - शिक्षा | Naitik Shikhsa

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : नैतिक - शिक्षा  - Naitik Shikhsa

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about तनसुखराम गुप्त - Tanasukharam Gupt

Add Infomation AboutTanasukharam Gupt

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
देश-भदित देश-भक्ति चब्द হী शब्दो से भना है-देश+-भवित। दमका भ्रयं है देश की सेवा । तन, मन भार धन से देशहित कार्य करना देशभवित है। हमारे पालन-पोपण में देश का प्रत्येक पदार्थ योग देता है। देध ই মদন আব জল से हम बड़े होते हैं | देश की वायु भौर वातावरण हमें जीवनदान देते हैं। देश की सम्यता भौर संस्कृति हमारे व्यक्तित्व का विकास करतो हैं। इसलिए देश को स्व से भो बढ़कर माना गया है। मंथिलोधरण गुप्त ने देश के गौरव से प्रभिमान-धून्य ध्यक्षित फो 'वह नर नहीं मर पशु निरा है भौर मृतक समान है' बताया है। प्रंग्रेज कवि स्कॉट ने कहा है 'जिस ध्यति ने पपनी जननी. पन्मभूमि से प्रेम प्रदशित नहीं किया, वह चाहे जितना घनवान, বানান, बुद्धिमान बयों न हो, किन्तु यह पपनी जाति का झादर- माजन, सम्मान-भाजन पधोर प्रेम-माजन नहीं होता । पपने जोवन काल में वह निजवबंधुवर्ग के द्वारा स्पमान का दृष्टि से देखा जाता है भोर मृत्यु के बाद उसको उस सोक में निन्‍दा होतो है भ्रौर परलोक में उमक प्राह्मा को धान्ति मही मिलती ॥! विदेशों में देशमकिति के उत्तद उदाहरण मिलते हैं। भ्रम महायुद्ध में छोटे से जापान ने रूस जैसे विधास देश को परास्त कर दिया था। गत वर्ष छोटे ते इजराइस ने ঘবে राष्ट्रों शो! पराशित कर दिया। दो दशाब्दी पूर्व सक भंप्रेजो-गाशयाग्य इतना भपिश विस्तृत दा रि लोग बहते ये, “उनके राज्य मे सूयं ष्मो मद इयणा।' दह सद इततिए हषा ठि वहा का बण्वा-रष्वा मानृभूमि के लिए कट मरने को प्रस्तुत या ग हमारा देश १६ प्रगस्‍त १८४७ को स्वतर्त्र हृधा। परतम्व॒प्रा ष्टी शो प्यारों नहों। घतः ११०० बर्ष शक देश सें रबतन्दता- शब्ति के जिए प्रयाग हुए। पासो मे घनो बान येशई; नयः सोम { १ }




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now