पश्चिमीय आचार विज्ञान का आलोचनात्मक अध्ययन | Paschimiya Achar Vigyan Ka Alochnatmak Adyayan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : पश्चिमीय आचार विज्ञान का आलोचनात्मक अध्ययन  - Paschimiya Achar Vigyan Ka Alochnatmak Adyayan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about ईश्वरचन्द्र शर्मा - Ishwarchandra Sharma

Add Infomation AboutIshwarchandra Sharma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
श विपय-अ्वेश ओऔपचारिवता का स्थान तो अवश्य होता है, विन्‍्तु झुभ कर्म सदेव वही होता है, जिसको व्यावहारिक जीवन मे सद्‌मावना से उतारा जाता है । श्रत यहं भ्रश्न उठता है कि क्या सदाचार एक एेसी कला है, जोति किसी व्यक्ति मे कम श्रौर विसीमे त्रधिक पाई जाती है अथवा वह केवल एक ज्ञान है जिसके ग्रध्ययन से व्यक्ति स्वत ही उदात्त, सच्चरिि और सदाचारी बन जाता है। यदि किसी व्यक्ति को दूसरे व्यवित से अधिक सदाचारी इसलिए मान लिया जाए कि उसमे सदाचारी होने की अधिक दक्षता है, तो इसका भभि- प्राय यह होगा कि आ्राचार विज्ञान एक कला है। इस प्रश्न का निर्णय करने के लिए हमे विज्ञान तथा कला की तुलना करुनी चाहिए। हमने विज्ञान की सक्षिप्त व्याख्या पहले ही की है और यह बताया है कि विज्ञान किसी विपय वा सुव्यवस्थित ज्ञान होता ह । विज्ञान का उदर्य विसी विषय के प्रति स्पष्ट, सगत श्रीर नियमित क्नान प्रतिपादित करना है । दूसरे शब्दो मे, वह्‌ हमे किसी विपय की पूरी-पूरी जानकारी देता है। विज्ञान की विशेषता वेवल जानने-मात्र एव ज्ञान तक ही सीमित है । इसके विपरीत कला एक सुव्यवस्थित, दक्षता एव ग्रम्यास है, जिसका सम्बन्ध व्यावहारिक किया से रहता है ! यदि विज्ञान की विश्वेपता जानने मात्र मे है, तो कला की विशेषता किसी किया के करने में है। विज्ञान तथा कला का यह्‌ भेद, इस वात को स्पष्ट करताहैकरि किसी भी विपय का विज्ञान तया उसकी कला सदैव एक-दूसरे के साथ नही रह्‌ सकते । ऐसा भी हो सकता है कि एक व्यक्ति किसी विपय के विज्ञान को भली भाति जानता हो; किन्तु वह उसी विपय की कला से सर्वेधा अनभिज्ञ हो। उदाहरणस्वरूप एक भौतिक- शास्त्र का विद्वान, जल में तैरने के भौतिक नियमो को भले ही जानता हो, किन्तु इसका अभिप्राय यह नही कि वह तैरने की कला को भी जानता हो । सम्भवतया वह यदि जलाशय भेगिर जाए, तो तैरने के भौतिव नियमो को वण्ठस्थ करने के उपरान्त भी झपने-ग्रापको ड्बने से न वचा सके। इसके विपरीत एक श्रशिक्षित और मूर्ख गवार,जिसने कि भौतिक- विज्ञान का नाम भी न सुना हो, जल मे तैरने को कला मे निपुण हो सकता है। न ही केवल सैद्धान्तिक विज्ञानो में, अपितु व्यवहार से सम्बन्ध रखनेवाले विज्ञानों में भी, ज्ञान भर बला का, सिद्धान्त भौर व्यावहारिवता का, तथा जानने और वार्थान्वित करने का यही अ्रन्तर रहता है। उदाहरणस्वरूप चिकित्सा-विज्ञान में जो छात्र सर्वप्रथम रहा हो, वह सदैव सफल चिकित्सक नही वन सकता 1 इसके विपरीत चिवित्सा-विज्ञान की कक्षामे सवते कम श्रक प्राप्त वरनेवाज़ा व्यक्ति, सवसे अ्रधिक सफ़ल और दक्ष चिकित्सक भमा- णित हो सकता है। यही धात अध्यापको के प्रशिक्षण के सम्बन्ध में भी सत्य प्रमाणित होती है। जो व्यक्ति अध्यापवो के प्रशिक्षण मे सवप्रयम स्थान प्राप्त कर ले, सम्भवतया बह पढाने मे असफल हो सकता है। इस दृष्टि से कोई भी विज्ञान ऐसा नही है, जिसके अध्ययन से व्यवित उसी विज्ञान के विषय मे व्यावहारिक दक्षता भी प्राप्त कर ले । दुसरे शब्दों मे व्यावह्यरिक दक्षता का विद्युद्ध विज्ञान से कोई सम्बन्ध नही रहता । विज्ञान तथा फला के इस भेद के आधार पर हम झाचार-विज्ञान को क्दापि कला नही मान सकते ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now