पंचदश लोकभाषा - निबंधावली | Panchdash Lokbhasha Nibadhavali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(८) অবলা दीव कहता हूँ पब्छिमी--कहित द्विया % पूर्वी--कह5 हियो 2 বাযা লিউ মী অনল দিয়া কা सल्तिप्त नद वरन्‌ स्पष्ट रूप प्रयुक्त दता दै । जैसे--कहैत हथु, ऊहदेत ही इत्यादि । रा्ट्रमाणा की दृष्टि मे इन सूक्ष्म मेदा वे पचड़ों में पड़ने से हाई ताल्ालिश लाभ नहीं। “मस्दी' वाइमय के उपयोगी और मुन्दर शब्दों का सचय अधिक उपादेय द्वोगा | इसलिए सक्तिप्त रूप में “'मग्गढी' को विलक्षणताएँ और विचितताएँ मननीय हैं | इसके प्रदर्शन के पूर्व एक बात कह्द देना मैं उचित समझता हैँ और वह यद्द दे कि मगही के मुद्दायरे और शब्द प्रिहार मर म भरे-ढ़ ही हें, पूर्वी उत्तरप्रदेश में मी पाये जाते हैँ। भोजपुरी मापा 'अ्र्ध मागधी” की कुलदीपिफा है, उसकी सज्ञाएँ प्राय मगाही! हैं। मैथिली में क्रियाओं के मेद के अतिरिक्त उच्चारण मात्र का कुछ मेद है | भापान्तर के शब्द मगद्दी म॑ मिश्रित इने ते लिए, भापात्तर के शब्दा क्रो अपना शगढंग भदलना पढ़ता है। जेसे--मौअ्रत, दरगिस्सो, अदमी, नगीचे, सेलाय, तलाओ, बगइचा इत्यादि। रुप्यद यूमुफपुर (सदीसोपुर), कमरउद्दोनगज (क्युर्दीर्गज ), ठुसते औलिया ( तिरपौलिया), बीयोँ सिफाह (उीआसोह) इत्यादि | इसी प्रकार, अँगरेती के जज, कलद्वर, भजिस्टर, निलिद्ध, रीखन, टेन, टैम, लाइन इत्यादि। राष्ट्रभाषा प्रेमियों के लिए, व्िचारणीय है हि देश की झ्रात्मिफा का शासन वे मानेंगे श्रयया प्रिदेशी शर्न्दा का दही में मृमल के समान गरोंगे। मंग्दी पाली भाषान्तर के शर्न्दा का परहिप्कार नहीं करती, प्रत्युत सवंतोमाव से उसे श्रपना लेती है--उसके परमाय का दूर कर देती है । प्राक्त शर्ब्दो का यथावत्‌ प्रयोग प्श्िमौ हिन्दी म उदके प्रमाय ते श्रग्ररान्त करा लन उ्ारणु करने का श्रम्याच है । मग में श्रकारान्त दीर हो जाता है। जैसे-- संस्कृत दिन्दी भगी ছু प्‌ त्या कर्णं कान्‌ काना মদন मान्‌ मत्ता ग्राम साय मामा पम षाम्‌ सामा जनु मनू जला




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