महादेवी संस्मरण ग्रन्थ | Mahadevi Sansmaran Granth
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
233
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रिय सन्ध्य गगने मेरा जौवनं।
यह क्षितिज चना धुंघला विरागं
नव अरण-अरुण मेरा सुहाग
छाया सी वाया वीतराग ও
सुधि भीते स्वप्न रेंगीके घन ,
प्रिय सान्ध्य गयन मेरा जीवन ।
महादेवी जी माँ-चाप की पहली सतान है। रूदिग्रस्त मारतीय समाज मे आजमी,
पर आज के पचारू वर्ष पहले तो निश्चित रूप से प्रथम कम्या-छाम शुभ या सुखद नही
माना ज्ञाता था। महादेवी जी ने र्वय इसका उल्लेख किया है--“जैसे ही दवे स्वर से लक्ष्मी
के आगमन का समाचार दिया गया वैसे ही घर के एक कोने से दूसरे तक एक दरिद्र निराशा
व्याप्त हो गई। वडी-बूढियाँ सकेत से मूब गाने वालियों को जाने वे लिये कह देती और
बडेबबूढे इशारे से नीरब वाजे वालों को विदा देते--यदि ऐसे अतिथि का भार उठाना
परिवार की शक्ति से वाहर होता, तो उत्त बरेंग लौटा देने वे' उपाय भी सहज थे |” सौमाग्य
से इनका जन्म बडी प्रतीक्षा और मनौती वे पश्चात हुआ | इनवे' बावा ने इसे अपनी कुल
देवी दुर्गा का विशेष अनुग्रह समझा और आदर प्रदर्शित करने के लिये नाम रखा--महादेवी।
साकेतवा1र वी यह उक्ति---सौ सौ पुत्रों से भी अधिक जिनकी पुत्रियाँ पूतशीछा'
वास्तव में राजा जनक की पुृत्रियों के लिये जितनी सार्थक है, उतनी ही श्री गोविन्द प्रसाद
को पुत्री महादेवी वे लिये भी ।
महादेवी जी का काव्य करुणा-ककिति-अश्रुसिक्त है| पैदा होते ही रोते तो सव
बच्चे हैं, पर इनबी रोने की अदुभुद आदत | माँ--हेमरानी देवी आस्तिक स्वभाव वी
भारतीयः नारी होने वै कारण पत्ति को खिलाने-पिलाने का कार्य नौकरों पर न छोड कर
स्वय करना चाहती थौ मौर महादेवी जौ इस बीच रो-रोकर कोलाहल मचा देती थी ।
माँ ने विवशता से परम्परा-प्रचलित अफीम वा सहज सम्बल ग्रहण किया । अफीम खिलायी
भौर शूकै पर पडे प्रगे पर डाल दिया । वे अपनी द॑ैमिकी में व्यस्त हो गई और बालिका
ने कह्पना-छोक की सैर वी |
अफीम-सेबन से हानि जो भी हुई हो पर प्रत्यक्ष छाम यह हुआ कि अन्य शिशुओं
को अपेक्षा इनका विकास शीघ्य हुआ । तीन वर्ष की अवस्था में ही आम को पाल से सार
चुन लेने में आप निपुण हो गईं । वर्णमाला-ज्ञान के साथ ही भाई-बहन को चिढाने वी करा
का प्रदर्शन करने लगी 1
पाँच वर्ष की होते-होते आप को भोपाल तथा इन्दौर की यात्रा भी करनी पडी,
जहाँ अतीत के चलचित्र' का रामा इन्हे मिला 4 छोटे भाई की स्पर्धा में साम दाम-दण्ड-
मेंद के हारा रामा को आप किस तरह केवल अपने ही लिये राजा कहने को बाध्य कर
देती थी, इसकी भी एक रोचव कहानी है । अवस्था की प्रगति के साथ-साथ जीवन-विस्तार
महादेवी-सत्मरण-ग्रंय ११
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