बदलते द्र्स्य | Badalte Drashya

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Badalte Drashya by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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च बदलते दृश्य १६,००० फुट की ऊँचाई पर हम उड़ रहे थे। कैप्टन की बुक्नेटिन' को बेनीपुरी जी के हाथ में थमा कर जय मैंने खिड़की से वाहर देखा, तो नीचे घुधलक्ान्सा दिल्लाई दिपा--दूर-दूर रिखरो हुईं ब्वियों और दंजग जमोन के गदेव दुकद़े। चेनीपुरी जी ने डायरी लिखने का क्रम जारी रखने के लिए सिगरेट थी फर प्रेरणा प्राप्त करनी चूही। मैंने उन्हें सिगरेट दी और कुछ देर तक हम लोग प्रिदेन के सम्बन्ध में यातें करते रहे । उन्होंने कट्टा--मुमे अंग्रेज़ों ने बंदी बनाया और उन्हीं अंग्रेज़ो के निर्मश्रण पह में मिटेन जा रद्दा हैं। यह जाति भी विचित्र है !” मैंने दद्धा-वेनीपुरी जी, अंग्रेजनशसक जरूर उरे है, मगस जिटिश जाति वी घदो भीरवशालिना परम्परा है। बेनोपुरीजो ने बढ़े नादकीय ढंग से कट्टा--/प्यारे भाइयो, यही तो दिचितता है !” सचमुच साम्राज्यवादियों के खंदन का चित्र जितना धणित है, उतना ही घिटेव छी येष्टाहुर जनतः का चित्न गरिमामय है । विरंकुश नरेशों देः विरुद चहाँ की जनता ने प्रवद्य संवर्प किया श्रौर लंदग वही नगर है, जहाँ क्रिय ज्ञान यो इच्छा न होते हुए भी जन-संघर्ष से मज़बुर हो कर १२१४ के नागरिक- स्पतंग्रता-सम्बन्धी घोषणापत्र ( मैगनाकादो ) पर हस्ताक्षर करना থর্ধা গুহ चाल्सं प्रथम को अपनी निरंकुशता की कीमत सिर दे कर चुकानी पढ़ी। मैं शेक्सपियर, मिर्टन, शेज्ञी, बायरन, कीद्स, थेकरे, डिफेस्स भौर बरनईंशा के लंदन जा रहा हूँ, जिसने विचारों के विरोध के बावजूद सायसे को शरण दी। ओधोगिक-ऋ्ति के नयर में ही विश्व का प्रथम क्रास्तिकारी अन्तर्राष्ट्रीय सजदूर संघ स्थापित हुआ था और यहीं १८६४१ में इसको प्रथम कांग्रेस हुई थी। इसी महानगर में दुनिया के मजदूरों एक हो! का सर्वप्रथम नारा गूँजा আআ लंदन में ही लेदिन को शरण मिज्ती ओर यहीं सुप्रसिद फ्रोमीसी लेखक वारतेयर ने निर्वासन की अवधि व्यतीत की । न जाने कितने ऋन्तिकारियों ने इस नगर से रष्ट कर अपने सन्‌ कार्यो के लिए प्रेरणाएं प्राष्ष को) ओऔर मैं उसी लद॒न को देखने की लाक्षसा से उड़ा जा रहा हैं, जिसके नवयुवक साहित्यशरों--रैज्ञेफ फाक्स, क्रिस्टोफर काउवेल झादि--ने स्पेन की जनता के किए ऋषरो के विरुद्ध जद कर अपने प्राण की घति दे दी ! में उस लंदन को श्रद्धा की दृष्टि से देखता हूँ, जिपने 18४० में अपूब साहस के साथ जम॑न बस-वर्पो का सामना ड़िया, परन्तु फान्स के समान अपना सिर न सुकाया 1 मै खु दिमागसे च्रिटेन कौ परिस्थिति शने देशा, क्योंकि मेरी श्रि पर ङि रंग का चरमा नष्टं लगा ३1




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