पश्चिमी दर्शन | Pashchimi Darshan

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Book Image : पश्चिमी दर्शन  - Pashchimi Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुकरात ते पडते ष्‌ मापते कामं पडी कि उसमे कसी बिदोप इकाई की सस्या निरिषत की जाय। मष ह-स्परीीनष्टर्बीहै হ্যাং ভা লা द। एकदम १२६ होते है और टाक मे पांच होरे होते है । ज घौर मायु जि सन्त भौर एनस मिलिड्ध ने लगत्‌ का मूक कारण बताया पा तौके शोर मापे ला सकते । सस्या षन दानो से झनिक्र मौछिर है। हम एंसे जगतू का चित्दन कर सकते है जिसमें रग-श्म मौमू गं हो परु हम डिसी ऐसे जगत का चिन्तव नहीं ढर सकते बिसमें सक्या गा अमाम हो। पाइबेगोरस (छठी घती ई थू ) गे सस्या को विएत का मूसतत््य बयान गिया। जकू बायु भादि शो हम देखते है उन्ह कछू भी सगते है। परन्तु शप्पा किसी ज्ञानस्द्रिय का बिपय नही । इस ठरह पराइपेबोरस मे एक अद॒श्य मसपृ्य एत्व ग मूलत्व क्ा स्वान देव र दार्पलिऊ बिभार से एक नमा यप्त प्रतिप्ट बर दिया। एक और अमेक” गा विषाद मी दाएंतिको बे छिए एक णटिस प्रन मा। पाइबेगौरस से सफ्पा को एड और जने मे समन्बय देखा । १ इकाई है। झुछ इफाइयाँ एक घाम मिं । यहां बहुत्व या अनेषत्व प्रतट हो जाता है। ५ की स्थिति क्‍्पा है? मह एक है या बहुत ? इसमे पांच शकाइमाँ सम्मिस्ित है. इसछ्तिए मह अनेक है। यह गिखरी हुई इकाइया का समृह नही सपितु एकत्व इसमें विधमान है। इस तरह सप्पा में एक और मनेक गा समस्यम है। ससाए में हम अनुरुपता तम और सामज्जस्थ देखते ई। यह सब सस्या से सम्बद है । हम रश्ते हैं--- भगुप्य का धरौर सुशैरु है एसबे अज्ञोम लनुश्पता है। इसबा अर्थ यही है कि इसरे अज्भा को विश्तेप सह्या से प्रकट गिया जा सयता है। उम क्या है? हम दुछ्ठ पदार्थों को उम मे रखते हैं। इसरा अर्ष यह है कि जो জন্ত্র उनमे पाया जाता है बह बिपेप सस्या स प्यकत गिया जा सफठता है। सामज्जस्य का जभ्य उदृष्रणरागम मिख्ताहै मौर राय का सम्बत्ध सकया से स्पप्ट ही है। पाइजेयोरस झा स्याकू था कि बिए्ब के अतेब माया की पर्ि में एश राप उत्पन होता है सौर बड़ राय माती राग से पूर्णतया मिख्ला है। पेक्सपियर से एक शाटक में इस कपास गौ जोर सपेश किया है -- “जैसिका | बैदो। देखो आाशाए में घोत क टगड़े बैँसे बने जदे हुए ६. जिन तारों को तुम देखली हो इनम छोरे से छाटा सारा भौ अपनी पति में देवषपूत बी तरह




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