शिवको | Shivko

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ परिवार व समाज ক নীল हुए गहरे मत्रमेद को अभिव्यक्ति मिलो है। परिजनो ओर मरां के वीच हुए गहरे मतमेद गौर सपर्ण को अभिव्यक्ति माभादास में भी मिलती हैं । अन्य भक्‍तन्याथाओं व प्राप्त इतिहास में भी इसका समर्थन मिलता है। समाज में निन्दा होने कै कारणं परिवार वालों ने मीराँ के साधु-समागम का गहरा विरोध किया। पदों से व्यक्त होती इस मावना को इतिहास व मक्त-स्याभो का पणं समर्थन प्राप्त है। एसे पद ठगभेग सभी कयोषक्थन भौर वणंनात्मक शटी में प्राप्त है । अधिकाश पद्दी में दोनो ही शैलियों का सम्मिश्रण हुआ है। भावावेश में अपने उद॒गारों को भा उठने वाली मीरा द्वारा इन उपर्युक्त शैलो मे र्षना अयुक्त ही प्रतीत होती है। इन पदाभिव्यक्रियो ने स्पष्ट हो जाता है कि यह कयनोपदयन मीं व मा, ननद उदां वाई, मास और किसी राणा के वीच हुआ है। अयावधि मीराँ की माता का उनकी छोटी वयम मेही नियत हो जाना मान्य है। प्रियादास इत भक्‍तमाल” को टीका व अन्य उद्धरणों' के आधार पर भी पदो से ब्यवत होते वाले इस पहलू को स्वंया अमान्य नहीं कहा जा सक्वा। ननद ऊर्दा वाई या सास के बारे में भी वर्तमान इतिहास कोई सुनिश्चित हछ नहीं दे पाता है। इसी तरह यह भी सुस्पष्ट नही हये पाता कि पदो मे वणित यह्‌ राणा कौन थे। पदाभिव्यवित के जाधार पर यह राणा मीराँ के पति ही मिद्ध होते है। कुछ पदों (स० ५) में तो राणा के साथ हुए विवाह का विशद वर्णेन भी दै। इतना ही नही विभिन्न पदाभिव्यवितयो से यह भी सुम्पष्ट हो जाता है कि इस विवाह कार्य को मीराँ की अनिच्छा और कठिन विरोध को अवहेलना कर सम्पन्न किया जाता है। प्राप्त इतिहास बताता है कि गृहलश्रवेश के साथ ही साथ मीरा বা अन्य परिवार वालो से देवी- पूजा के प्रशत को लेकर विरोब हो गया था। राजस्थानी प्रयानुसार गृह- प्रदेश के अवसर पर देवी-यूडा या बोई प्रझण ही नहीं उठता। जसु बहुत सम्भव है कि विवाह के प्रति उदामीनता की क्यावस्तु ही काझा- न्तर म देवी-पूजा के प्रति उदामीनता की क्‍या में परिवर्तित हो गई हो। “छाजे कुम्भा जी रो वैमणो जसौ बृ पदाभिव्यवित के आधार पर यह कहा जा सकता है कि पदों में वण्ित ये राणा सम्भवतः भीराँ के पति राणा दुम्भ ही थे। “लाज दूदा जी रो वेसणो” जैसी अभिव्यक्ति ` ९ देके औस, एक अध्ययन-मातापिता




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