गाँधी बनाम राजनीति | Gandhi Banam Rajneeti

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Gandhi Banam Rajneeti by बन्धुरत्न - Bandhuratna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४५ ) शपयोग इसछिए रुचित नहीं दे कि ইলা ভীত হী मनुष्य की क्रिया- शीक्षठा कम हो जायगी | हनका विचार हे कि मनुष्य में क्रिपा- शीक्षता व्त्पन्न करने के छिए सम्पत्ति का मोह चनाये रखना झाष ग्यक है सम्परि कौ सचा षो स्वीकार शने र वाद्‌ कत्रीयषर्य ओर नोकरशाद्दी आदि के अनंक दाप अतियाय दो जाते है| कुछ झोगों का कपन हे कि मानव की अपनी शासन करने की লালা हे भस्म्त स्वापमय ना देवी है । रख मावना को रोकने के क्षिए प्रत्येक समानगवादी व्यवस्था में राञज-सक्िि छो भाव हुयकठा पढ़ती दे सो मानव के ब्यधइार झोर झाघरण पर नियन्त्रण रखे । महद्दात्मा गाघी मनुष्य को सर्वोपरि मानवे हँ भोर नष विचार में मनुष्य स्पार्थी नहीं है। साभ ही सम्पत्ति मानव इतिहास में बाद में रत्पन्न हुई थी। अता मानव में क्ियाशीकवा छाने छ क्लिप सम्पत्ति के द्वाल्लय की कोई भावरयकठा नहीं हे। ड्यषित का दोप म्टी हे वल्कि उस हयपस्था का दोप हे जिसने ट्यकबित को उसके ध्यक्षिदगत अषिकारों से बंघित कर दिया हे ओर स्यक्ति भौर व्यक्तिद के थीच तूर। बनाये रखने का माध्यम झयथ॑ को वना विया हे। व्यक्तित को पूर्ण रूप स स्ववश रवते हुए रुसम सासाजिक हृ्टिको उत्पन्त करने के द्विए शाकित के प्रयग प्स कदय प्राप्ति नहीं की ला सकती | इसके छ्ए ता ऐसी सामाजिक व्यवस्था की आवश्यकता है शिसमें स्पक्तित के पर फिसी प्रकार के बख्यन न द्वां। रुत्पावन करने ओर अपने भाप को पिकसित करने का इसे पूरय॑ अधिकार है । सर्योद्रय समाज में मनुष्य अपनी झुख्र कल्‍्पना का साकार एपरूप देगा | सद्दास्मा गांघी ने क्टा है । “दुनिया के राष्ट्री का असश्ली श्षद्प अपनी-धपमी अद्ंग




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