श्वेताश्वतरोपनिषद | Shvetashva Taropnishad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय १ ] शाहरसाप्यार्थ २ পপ পি শপ পপ পপ পা শা उनित्यत्वादिदशनेनोत्पन्नेहामु- त्रा्थभोगविराग उपेत्याचायमा- चार्यहारेण वेदान्तश्रवणादिनाहं ब्रद्म।स्मीति त्रह्मात्मतत्वमवगम्य निवृत्ताज्ञानतत्का्यों. वीतश्नोको भवति | अविदयानिवृत्तिलक्षणस्थ मोक्ष पिदययाधीनत्वष्युज्यते च तदर्थोपनिपदारस्भः। तथा तद्विज्ञानादमतत्यम्‌ । भात्मशानस्म #तुम्तेत्न विद्वान- माल्यम्‌, भृत्‌ इह भवति! ( सिंह पवे° १18 ) “न्य पन्था विद्यतेऽयनाय ” (-श्रता० £ | १५) । त॒ ॒चेदि- हावेदीन्महती विनष्टि।” ( के ०२] ५)। “थ पएतद्िदुर- . मृतासते भवन्ति” (ज्ञू० उ० ४। ४। १४) | “किमिच्छन्कस्य कामाय शरीरमनु संज्वरेत्‌” (चू० उ० ४। ४। १२ )। “दं विदि- त्वान लिप्यते कमेणा पापकेन !” (श्रृू० उ० ७ । ४७ । २३) “तरति शोकमात्मविन्‌ ( छा० उ० ७1 १| ३)। निचा तन्म्ृत्युमुसात्मुच्यते । क० ! मुक्त और वस्तुओंका अनित्यत्वादि देखनेसे ऐहिक और पारलौक्िक , भोगोसे विरक्त हो जाता हैतत्र आचार्यके पास जाकर उनके द्वाग वेदान्तश्रवणादि कर्के भै व्रह्म है इस प्रकार ब्ह्मात्मतत्वका साक्षात्कार कर बह अज्ञान और उसके कार्यकी निवृत्ति हो जानेके कारण शोकरहिन हो जाना है। क्योंकि अज्ञाननिव॒न्ति- रूप मोक्ष ज्ञानके अधीन है, इसलिये ज्ञान ही जिसका प्रयोजन है उस उप- निपद्का आरम्म करना उचित ही है तथा उस (बरह्म मत्न) कै পাননি अमृतत्व॒ प्राप्त होता है। उसको जाननेबाला इस ফল अगन (मुक्त) हो जाता है”, 'भोक्षम्राप्तिके लिये कोर दूसरा माग नहीं हे , यटि यहा , उसे न जाना नो बढ़ी भास हामि है”, “जो इसे जानते है अमर हो जाते ह , ण অতি पुरम णह परमाला में ही व देना तनि तो व |] क्वा उच्छा करना हर्ज पिम झापके लिय रागीरके पीले सम्मप् हो , पते जान सेयर अव यार रमसे स्ति नकी पार इसका उंनभ्ल अम छ स्याही ७15 ३३३ + ११३६




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