वेदाविर्भाव | Vedavir Bhav
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
252
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)1৯৭
ইক श्रमन्ठर पुनः स्वामी दरशनानन्दभी बोले कि शैनियोकि माथ
अजमेरम होनेवाले शाखाथथमें पं० गोपानदासजीकी युक्तियाँ वढ़ी प्रबल
यीं । मुझे दिखाई देरहा दे कि भविष्य से उनकी युक्तियोंका खरबन
करनेवाला समाजम कोई भी नहीं है? ।
स्वामीजीके दृदयपर इस वातका बढा गहरा प्रभाव पड़ा । जिसके
कारण आपने अपने मनमे यह इृठ निश्चय किया कि में इस कमीकौ
अवश्यमेव पूरा करूणा । श्ररणएव सव भ्यापार. चन्द् करके आप संस्कृत
पदनेकेलिये बनारस चले गये 1
वहाँ सैनदयोनोके साथ साथ श्राप संसदा श्रध्यथन् करने कगे ।
किन्तु झाये विद्यार्थी होनेके कारण आपके विद्याध्ययनमे एक बढ़ी भारी
भ्राथा भा उपस्थित हुई | जिसके कारण आपको काशी छोडनी पढी।
वहाँसे चद्धकर बनारस और जौनपुर के योच में एक आम है, उससें
पं० पातञ्जजलिकी अ्रपनी पुक़ पाठशाला थी। स्वामीजी परिडतजीसे
विद्याध्ययन करने लगे | परणिडितजी चढ़े उदार और सहददय पुरुष थे 1
अतः वहाँ आपका अध्ययन बहे प्रेम, संठोषके साथ सम्पन्न हुआ |
इंस प्रकार स्व्रामीजी अन्य स्थानोंपर पढते-पढ़ातें सन् १६१८ में
भिवानी क्तौ श्राये श्चौर यदं श्नाकर श्रापने कपठेकी दुकान करली 1
परन्तु उन्दीं दिनों भिवानीमें जैन साघुर्ोका चतुर्मास हो रहा था ।
स्वामीजीने उनके साथ वाद-विवाद करना शुरू केर दिया । यह विवाद
निश्य दता हौ गया शौर श्रन्तमे दख बिवादने एक बद् रूप धारण
कर लिया ।
तप्पश्नात् स्वामौजीको दुकान छोड कर रातदिन जैन अंथोके स्वा-
भ्यायमैं लगना पडा। जो कुछ आपके पास पूजी थी वह भी जेन्रयोंके
खरीदनेमें ब्यय करटी । श्रत. एक हजार रुपयेका नुकसान देकर दुकान
छोड़नी पढ़ी । उन्हीं दिनों कांग्रेसका आन्दोज्षन भी चालू होगयां था।
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