विद्यापति-काव्यालोक | Vidyapati Kavyalok

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Vidyapati Kavyalok by नरेन्द्रदास विद्यालंकार - Narendradas Vidyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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/(छु) वेन्ध्याचल से थे बराबर तकाजा! करते रहे.। उनका एसा प्रायः एक भी प ' नहीं आया जिसमें उन्होंने उसके लिये ताकीद न की हो। मेरे पितृथ्य मेरे जीवन-निर्माण के एक सबसे सुद्दढ़ स्तम्भ रहे हैं । बचपन से ही उनके स्नेद्ाम्त से इस श्रकिचन का रोम-रोम 'सींचा गया है उनके चारभ्वार उत्कड आग्रद को में अब ठाल न सका ओर रात के पिछले पहर में उर-उस्कर मे ऊघु-क् गोद-गाद्‌ करने लगा । परन्तु फिर भी चुनाव- जैसे सार्मजनिक कार्य्ये लगे रहने के कारण वह लेख तेयार न-द्दो सका ¦ मतियोगिता में भाग लेने का समय टल गया ओर में सी निश्चिन्त हो गया। इतने में वे विन्ध्याचइल से लोड आये। उस अधूरे লিল को बड़ी उत्कंडा के साध उन्होंने देखा ओर उससे वे इतने प्रभात्रान्वित हूए कि उसे समाप्त कर देने के लिये बारमार कहने लगे।. परमात्मा की कृपा पुं पितृव्य की प्रेरणा से वड निचन्ध -तेयार हुआ। परन्तु अन्न वह धक्‌ पुस्तक का खूप धारण कर चुका था। उसकी साफ :ग्रति-ल्िप्र “करने की बातें हो डी रही थीं कि मेरे पूज्यपाद पितृव्य पुनः बीमार. हुए भौर इस -बेर.की बीमारी उनके प्रें को इस धराधाम-से सेस्देकर चलती वनी 1 सेरी सारी आशाओ्रों पर, उठती उम्रेंग नथा जीवन के अरमान पर पाला पड़ गया। से 1नराश हो गया। इतने प(रश्रम से माथली भापा में लिखे हुए इस ग्रन्थ को अब कोन प्रकाशित करायगा, इस न्ता सुभे दिन-रात खलने संगी मेंने हताश होकर इसकी चर्चा ही छोड़ दी । ২ परन्तु मेरे बहुत-से मिन्नों ने ठढस प्रन्थाकारं निवन्ध को. देखा । बहुतों की राय हुईं कि मूल अन्थ का हिन्दी-रूपान्तर कर प्रकाशित किया जाय । अन्त में लाचार होकर मुझे भी वैसा करने को वाध्य होना पड़ा। परन्तु तीन-चार सी पृरष्ठों के अ्न्थ का अनुवाद-काय्य भी सहज न था। परमात्मा की अनुकम्पा से श्रीयुत अश्रच्युतानन्द दत्त जी, . सहकारी सम्पादक, 'बालकः ; श्रीयुत्त देवनारायण लाल, “विशारदः तथा श्रीयुत योगीन्द्र सिह, शिक्षक, मिडिल इज्ललिश-स्कूल, सिहवाडा और मेरे श्रनुज्ञ श्रीयुत योगीन्द्रनाथ दास, बी० ए० आदि ने इस कार्य्य




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