पश्चिमी-चालुक्य-काल | Pashchimi-Chalukya-Kaal

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Pashchimi-Chalukya-Kaal by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३२] संक्षिप्त जेन इतिहास ।. ১২২২৬১১৯২১০ ৯, ৬২৯,২৯৮ .. ७.५ ७ «8७. ৯৬২১৯ -, ৯ ২৯২-৯৮২২২৯৬২২১৬-২৯৯২:-৯:২২২২২২২২২৩ पर निभेय था उनके साथ कुछ राजकर्मचारी भी रखे गये थे! ॥ इस प्रकारकी व्यवस्थाका ही यह परिणाम था कि रुक्ष्मीके सदपयोग- द्वारा धर्मोत्कष हुआ था । उस समय जैनधर्मके मुख्य केन्द्र श्रवणवेल्गोल, पोदनपुर, कोपण, बल्ग्राम, बादामी आदि स्थान थे। अ्रवणबे- जन केन्द्र- सोर श्रुतकेवली बद्रबाहुके पलेसे ही जैन श्रवणबेल्गोल। धर्मका पवित्र स्थान था । चाटुक्यकारुमें भी वह एक : महातीथे ” माना जाता था। इस कालमें यहाके कई जनाचायानि चालुक़्य राजाओंसे सम्मान प्राप्त किया था | वादिशज, वासवचन्द्र, विमख्चन्द्र, परवा दिम, अजितसेनादि जैनाचाये राजाओं द्वारा सम्मानित ओर अ्रवणबवेल्गोल्से सम्बन्धित थे | धार्मिक अनुष्ठानोंकों सम्मन्न करनेके लिये लोग श्रवणवेश्गोल पहुंचते थे और श्रवणबेल्ोलमें सल्लेखना ब्रत ग्रहण करके ऐहिक जीवनडीला समाप्त करना महती परण्योपाजन करनेका साधन समझते थ | धर्मधुरीण गुरुओंके साज्निकख्यमें धर्माराधनाका सुयोग देवदुलंभ है। किन्तु चाटुक्य कार्म वह्‌ श्रवणवह्गोलमें सुलभ था । पोदनपुर भी उस समय जैन केन्द्र होरहा था। यह वही प्राचीन स्थान माना जाता था जहां भरत चक्रवर्ती पोदनपुर । ` ओर्‌ बाहुवरीजीके अरहिसकर-युद्ध इस युगकी आदिमे हुये थ । वहीं एर बाहुवरीजीने तप तपा था-वहीं प्‌ इस पुनीत धम-कम॑की स्मृतिमें श्री भरतमहाराजने न -मैसूर आरकै° रिपोर, सन्‌ १९१६; पर ४९।




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