श्री मोक्षमार्गप्रकाशकेम्यो | Shree Mokshmargprakashkemyo
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
412
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४
तिस पर्याय धिपे जो कोय, देखन-जमन्ारो सोय ।
पै हं जीबद्रव्य, गुनभूष, एक अनादि अनन्त अरूप ॥४२॥
¢ ४
कमं उदयको कारन पाय, रागादिको ह दुःखदाय ।
ते मेरे औपाधिक भाव, इनिकों विनशे में शिवराय ॥४३॥
वचनादिक लिखनादिक क्रिया, वर्णादिक अरु इन्द्रिय हिया।
ये सव्र ह पुद्गल का खे, इनिमें नाहि हमारो मेर ।४४॥।
इन पद्यों परसे आपके आध्यात्मिक जीवनकी फोकीका दिण्दरंन होता है ।
आपके गुरुका नाम पं० वबंशीधर था, इन्हींसे पं०जीने प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की
थी | आ्राप भ्रपनी क्षयोपशमकी विशेषताके कारंण पदार्थ और उसके श्रथंका शीक्र
ही अ्रवधारण कर लेते थे । फलत: थोड़े ही समयमें जन सिद्धान्तके उपरान्त व्याकरण,
काव्य, छन््द, अलंकार, कोष आदि विविध विषयोंमें दक्षता प्राप्त कर ली थी ।
पंडितजीने वस्तुस्वरूपका श्रवलोकन कर सर्वेज्ञ वीतराग-कथित न्यायी
पंथका अ्रतुसरण किया, जैनियोंमें जो शिथिलता थी उसको दूर करनैका प्रयत्न किया,
शुद्ध प्रवृत्तियोंको प्रोत्साहन दिया और जनतामें सच्ची घामिक भावना एवं स्वाध्यायके
प्रचारकों बढ़ाया जिससे जनता जैनधर्मके मर्मको समभनेमें समर्थ हुई शोर फलतः
अनेक सज्जन श्रौर स्त्रियाँ श्राध्यात्मिक चर्चाके साथ ग्रोम्मटसारादि ग्रन्थोंके जानकार
वन गये । यह सव उनके प्रयत्नका ही फल था ।
सहधर्मी भाई रायमन्नजीने झापका परिचय देते हुए लिखा है कि-“श्रर
टोडरमलजी सू मिले, नानाप्रकारके प्रन किए, टोडरमलजीके ज्ञानकी महिमा
अ्रदूभुत देखी ।...श्रवार श्रनिष्ट काल विष टोडरमलजीके ज्ञानका क्षयोपदम (ज्ञानका
विकास ) विशेष भया ।” पं. देवीलालजीने लिखा है कि- टोडरमलजी महाबुद्धिमानके
पास शास्त्र सुननेका निमित्त मिला ।
्रजञाकी -बुद्धिकी अलौकिक विशेषता ओर कान्यशक्ति
पंडितप्रवर टोडरमलजीकी बुद्धिकी नि्मंलताके सम्बन्धे ब्रह्मचारी राज-
मलजी ने सं० १८२१ को चिट्टीमें लिखा है “साराही विषें भाईजी टोडरमलजीके ज्ञान
का क्षयोपशम झलौकिक है, जो गोम्मटसारादि ग्रन्थोंकी सम्पूर्ण कई लाख श्लोक टीका
बनाई और ४-७ ग्रन्योंकी टीका बनायवेका उपाय है। सो भागुकी अधिकता हुए
बनेगी । अर घवल, जयधवलादि ग्रन्थोंके खोलवाका उपाय किया वा वहाँ दक्षिण देशसूं
पांच सात और ग्रन्थ ताड़पत्न विष कर्णाट्की लिपिमें लिल्या इहाँ पधारे है। याकूं मन्नजी
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