सनातन धर्म भजनमाला | Sanatan Dharma Bhajanmala
श्रेणी : काव्य / Poetry, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सनातनधर्ममजनमाला | (९)
जब तिनके पति आवत निज गृह पावत अपनी पत्नी परघर ॥
धनधन्य हरी धनधन््य सखी धनधन बेंसुरी तन मन ढियो हर ॥
शिव नारद आदि सकल ऋषि मुनि सबदेखत गगन विमान ,रे ॥
कौतुक गिरधरके लखि न परे तनु मानुष बह्ल अखंड हरे ॥
युवती तनु नारी वेदसुरवि रविदीक्ा बजमें खेल करें ॥
हरिपुण्य वे पाव ने दुःख व छुख वेदान्तके कत्ता खेद परे॥
रचि छन्द यह काशीगिरि स्तुति कर मांगत भक्ति पदारथ वर॥
धनधन्य हुरी पनधन्य सखी धनथन बँसुरी तन बन दियोहर ॥
बन्द दश्ण सरोज तिहरे ॥
सुन्दर श्याम कमल दृढकोचन ठलित त्रिमेग प्राण पतिप्यारे ॥
जे पद पञ्च सदा शिव्को धन दिन्धखुता उरतं नहिं ररे ॥
जे पद पञ्च तातारिस चात मन द्च क्रम प्रहकाद मारे ॥
जे पद पृद्च पिरत वृन्दावन अहि शिर धरि अगनित एषु भारे ॥
जे एद् पश्च प्रसि वजयुव्ती জনই স্ব অহন विकारे ॥
जे पदं प्र छोकतचरय पावन सुरार दरश करत अध मारे ॥
जे पद पत्न परसि ऋषि पत्नी नृष और व्याध अमित खल तारे ॥
जे पद पद्म करत पांडव गृह दूत मये सन काज वारे ॥
ते पद पंकज सूरदास प्रभ॒ तरिविध ताप दुख हरण हमारे ॥
गोपी गोपार छाछ रास मण्डल নারী ॥
तत्ता थेदवा सुगन्ध ॒नितैत गहि बाँही ॥
दुम द्रुम इम इम सूद्ग छन नन् नन् हप रगं इगृता इगता तग
उषटत रसनाद्रं । वीव ठार वीच वाङ प्रतिप्रति अतिदवि रषा
अविगव गति अति उदार निरसि घ्म सरा । भीराधा मुख शरद
` चन्द परत जछ अम अनेद ` श्रीवजचन्द छटक छटक करत मुकठे
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