विसर्जन | Visarjan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विसजन ५ का वह मनस्ताप मी श्रचल हो जाता जो दारोगा की नौकरी छोड़ने पर उन्हे प्रा्त हुआ था | बेशर्मी के साथ उनकी घुणित नोकरी का औगरोश इत्र, जब तक वे अपनी कुर्सी पर रहे वेशममों की ही कमाई लाते रदे रौर वेशम के दामन से मुँह छिपाकर उन्हें अपनी खाकी वदों से पिड छुड़ाना पड़ा | यद्यपि हरिहर सिंह ( किशोर के पिता ) श्रव प्रत्यच्‌ देखने म दारोगा नही रदे, पर दारोगादृत्ति उनके रग-रग म घर कर गई थी | वे दारोगा न रहते हुए भी दारोगा की ही तरह सोचते ये और दारोगा की ही तरह उठते, बैठते, खाते, सोते थे | उनकी जीवन सहचरी कमला कभी-कभी पति की इस कटीर साधना को देखकर सिर पीट लेती, पर नस्करारखाने मे तूती की श्रावाज सुनता ही कौन दै । हरिहर सिंह यह प्रयत्न करते थे कि वह श्रपने मृत दारोगापन को मूल जार्ये पर॒ जव-जव उनके भीतर की उच्छुद्धलता जोर मारती, उनका ध्यान दारोगा की कुसो कौ श्रोर श्राप से श्राप चला जाता और एक ठंढी श्राह उनके मुंह से निकल पड़ती | वह कम से दारोगा नही रहे पर संस्कार से दारोगा क्या उससे भी ङु श्रधिक ही श्रमानव बने रहे | अगर शेर दाँत खिसोड़ कर मर जाय तो उसके खिसोड़े हुए लम्बे-लम्बे पैने दौँतों को देखकर निश्चय ही कमजोर हृदय के दर्शक काँप उठेगे | हरिहर सिंह का दारोगापन मर गया, पर उनके खिसोड़े हुए. दाँत देखने वालों में घबराहट पेदा कर देने के लिए काफी थे यद्यपि उन दाँतो से किसो को हानि पहुँचने की अ्रब कोई संभावना न थी | किशोर को उम्र उन दिनों १५ | १६ साल की थी जब उसके 'कुख्यात पिता को अपनी घ॒णित कुसों से, इच्छा न रहते हुए मी, कानूल की लात खाकर, उठकर भागना पड़ा था। किशोर ने श्रपने पिता का गर्जन-त्जन बुना था, अन्याय अत्याचार देखा था श्र दुखियों के आँसुओं से भीगे हुए पेतों का आनन्दोपभोग किया था | वह अपने पिता को प्यार भी नहीं कर सका और न उन्हें मनुष्योत्तर प्राणी समझ कर अपने मन की परिधि से बाहर ही खदेड़ सक्ा--वह अपने पिता को केवल पिता ममता था, इससे , में कम न अधिक ! , जिन दिनो हरिद्र सिंह दारोगा ये श्रौर श्रपने नृशस कर्मा से यत्र-तत्र-




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