चिता की चिनगारियाँ | Chita Ki Chingariyan

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Chita Ki Chingariyan by मोहन सिंह सेंगर - Mohan Singh Sengarस्व. प्रेमचंद - Sw. Premchand

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प्रेमचंद - Premchand

प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्‍होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्‍यासों से परिचय प्राप्‍त कर लिया। उनक

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मोहन सिंह सेंगर - Mohan Singh Sengar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७) उसके बाद तुकबन्दियों और फद्दानियों के रूप में मैंने बहुत कुछ लिखा, किन्तु यह्‌ सब युम तक दी सीमित था । मेरे घनि- छतम मित्रो र निकटतम सम्बन्धिर्यो तक को इसका पता न था । न मालूम कैसे, एक दिन यद्‌ रहस्य ध ज्लोगों प्र प्रकट हुआ, फिर कुछ अधिक पर और अब तो वह कह पत्रों के पाठकों तक पहुँच चुका है। यह सब जैसे भी हुआ हो, पर मेंने कभी इसकी कल्पना भी नहीं की थी कि मुझे अपनी चीज़ों को एक पुस्तक के रूप में सवसाधारण फे सामने रखना होगा और . विभिन्न रुचि के लोग उनके खरे-खोठे, मले-बुरे तथा न मालूम किन-किन बातों का नीर-ज्षीर-विवेचन करेंगे ! निश्चय ही मेरे लिये यह एक नया अनुभव होगा । अस्तु- ॐ [4 9 हर आदमी का अपना दृष्टिकोण होता है। संसार की विविध बातों को बह अपनी आँखों से देखता है और उन पर अपने ही ठङ्ग से विचार करता है । बहुप्ता अनेक लोगों के दृष्टिकोण और विचार-घाराएँ एक-सी मालूम पड़ती हैं और यह एक अणाली? का रूप धारण कर लेती हैं। प्रचलित श्रणाली के प्रतिकूल कोई बात कहना बुद्धि के साथ-साथ जीवट का भी काम है। पुरानी गुत्ञामी के कारण हमारे देश में विचार- परस्परा की यह प्रणात्री इतनी घातक, जदिल और दक्रियानूसी बन राई है कि पग-पग पर आज हम नये विचारवात्नों को उसकी अनुपयोगिता और असामयिकता खटकती है। हमारी




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