कवी प्रशाद की काव्य साधना | 1195 Kavi Prshad Ki Kavya-sadhna; 1943
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
302
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)परिचय [६
नये पथ पर ले जाने वाले इस मनस्वी युवक कवि,के “अनुचित साहस
और ्रनधिकार चेष्टाः पर लोगो की भवे तन गई । विरोध का
तूफान खडा हुआ | उसकी इस उछुहुलठा के बिष का अदाज़ लगाने
वाल्ले वैद्यों ने साहित्य की नाड़ी उठोल कर कद्दा--“दाय, इसने क्या
किया १ दम लोगों ने अपने आँसुओं का सागर! पिला-पिला कर
जिसका पेट बढ़ाया था और जिसके अज्ञारः मे.न जाने कितनी कुल-
कामिनिर्यां स्वाहा कर दी गई; जिसकी रक्ता कै लिए. हमने जीवन
की परवा न की, उसे कल के इस अ्श्ञान छोकरे ने विष पिला दिया 1
उस बिष को साहित्य का रोगी कैसे उगल दे, इसके लिए, बड़े प्रयक्ष
किये गये | पर यदद “व्रिध रोगी को कुछ ऐसा रचा कि वेह नीलकण्ठः
वन गया, सब পথন্ধ ঘং হু অব! .
उस ज़माने की समालोचना भी क्या मज़ेदार द्योती थी | गुण-
“दोष का ग़ददरा विवेच्रन तो कौन करता है, हँसौ-मज्ञाक_ उड़ाना और
दो-चार फब्तियाँ कस देना या फिर गुण-गान में छ्मीन-श्रास्मान के
कुलाबे मिला देना--यही उस समय की समालोचना थी और इस
नमक-मरिच॑ मिली समालोचना मे साहित्य: की कुरुचिपूण .बिह्य को
ऐसा स्वाद आया कि अब तक उसका असर बना है, ओर आज भी
समालोचन्। के डडे चलाने वाले लेखक हिन्दी के आादश समालोचक
माने जाते हैं। जिस प्रद्ृत्ति ने आचाये स्व० पंडित पद्मतिह शर्मा का
समालोचकाचार्य! की गद्दी पर श्रमिषेक किया, उसके प्रताप का उन
दिनों--नूतन के जन्मकाल मे--भला क्या कद्दना था ! बड़े-बड़े लोग
कविता के इस नन््हें उगते पोषे के ऊपर कलम-कुल्हाड़े ढेकर खड़े
हो गये |--वाहित्य क्षेत्र में मी अराजकता १ लोगों के नथने श्वास
के तीव्र श्रावागमन से एूलने लगे । किसी ने कदा- श्रमी कल का
छोकरा, चला दे कविता लिखने † किसी ने कदा--“खमदुकात कविता
में मेहनत पड़ती है न |” कोई को, जो कविता को भी जाति-या
वर्णु-विशेष की चीज़ समभते हैं ओर भारती के विशाल मदर में
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