मेघनाद - वध | Meghnath-vadh
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
516
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
माइकेल मधुसूदन दत्त - Maikel Madhusudan Datt
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(निवेदन छ
आशुग इरम्मद है सन सन चता )
एकदा चतुष्पदी चद्धैदर थी दमती
पत्ते खड़काती हुई ! पीछे पुष्प-गुच्छु-सी
पुच्छु दिकती थी जहा ! रुश्यामाकू वह में
विश्वप्रसू, विश्वम्भरा, दृशझुजा देवी पे
£ पुत्री ह स्येन्द्र दि जो मत्ता गजेन्द्रास्य की )
ऋत्विकों की सण्डली ज्यों चामर डुढाती है
शोभते शरद् में । या घटिका सुयन्त्र का
दिव्य दोलदण्ड डोलता है वार वार ज्यों 1?
मधुसूदन दत्त ने इस कविता पर रोष न कर के रेखक की रचनां
की प्रज्ञता करते इए तोप ही प्रकट केया धा ।
अत्र इ विपथ में जधिक लिखने की ज़रूरत नहीं जान पड़ती ।
अचुवाद के चछन्द के विषय मे “वीराङ्गना” काव्य के अजुवाद
की मूसिका मे छिदा जा चुका है । मृ गव्य छन्द १४ अचरों का
है। यह १७५ था १६ अक्षरों का होता है। परन्तु इसमें १७५ अक्षरों
वाजं द प्रयुक्त हुआ है | अतएव सूल के चन्द से इसमें एक ही अष्ठर
अधिक है। बगल में में, से आदि विमक्तियों के लिए अरग अक्षर नहीं होते ।
किसी अकारान्त शब्द् को एकारान्त कर देने से ही चह विभक्ति-युक्त
हो जाता है। जैसे “सम्मुख समर” पद में 'समर” को 'समरे कर देने
घे दी “समर मे का अथं निकलने उगत है। इसलिए अनुवाद वाले
चुन्द मे एकं अतर करा अधिक होना भूर धनद से अधिक होना नदीं
कहा जा सकता।
अनुवाद में इसकी परवा नहीं की गई कि एक एक पंक्ति का
अनुवाद एक ही एक पंक्ति में किया जाय। तथापि अधिकांश स्थलों में
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