श्रीमद् भागवत [एकादश स्कन्ध] | Shrimad Bhagavat [Ekadash Skandha]
श्रेणी : धार्मिक / Religious, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
428
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)' पहछा अध्याय ह ऋषियोंका शाप
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वे याद्वकुमार उस सूसलको लेकर राजसभामें आये भौर
समस्त यादवोंके सामने चद्द सारा प्रसंग कह सुनाया ।
श्रुत्वाध्मोघ॑विप्रशापं दृष्टवा च मुस् नृप |
वसिता भयसंत्रस्ता बभूवुद्वॉरकौकसः ॥२०॥
दे राजन | ब्राह्मणॉंका अमोध शाप झछुनकर और उस
'सूसलकों देखकर समस्त द्वारकावासी विस्मित होकर भयसे
“व्याकुल हो गये | |
तन्दूर्णयित्ा युसटं यदुराजः स॒ आहुकः ।
समुद्रसलिलि. आस्य्लोह॑ चास्यावशेषितम् ॥२१॥
तब यदुराज उम्रसेननें उस मूसछका चूरा कराकर उसे
म्वचे ए रोेके टुकडेखषित समुद्रम फिकवा दिया ।
कथिन्मत्स्योऽग्रसीछोहं चूणौनि तरटेस्ततः ।
उह्यमानानि वेलायां लप्नान्यासन्किरेरकाः ॥२२॥
उस लोदेके टुकड़ेको एक मत्स्य निगल गया तथा मूसल-
कारा तरंगोंसे वकर समुद्रतटपर छग गया । उससे वरहा
'सेंठे उपज आये।
मत्स्यो गृहीतो मत्स्यतैजखिनान्यैः सद्टाणैवे ।
तस्योद्रगतं खों स शल्ये छन्धकोऽकरोत् ॥२३॥
उस मत्स्यकों दूसरी मछलियोंके साथ मछेरोंने जालमें
'पकड़ लिया और उसके पेटमें जो लोद्देका टुकड़ा था उसे (जरा
नामक ) व्याधने अपने बाणकी नोकपर लगा लिया ।
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