श्रीमद् भागवत [एकादश स्कन्ध] | Shrimad Bhagavat [Ekadash Skandha]

Shrimad Bhagavat [Ekadash Skandha] by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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' पहछा अध्याय ह ऋषियोंका शाप ----------------=---------------- =-= ~~~ --~-~-----~---------- वे याद्वकुमार उस सूसलको लेकर राजसभामें आये भौर समस्त यादवोंके सामने चद्द सारा प्रसंग कह सुनाया । श्रुत्वाध्मोघ॑विप्रशापं दृष्टवा च मुस् नृप | वसिता भयसंत्रस्ता बभूवुद्वॉरकौकसः ॥२०॥ दे राजन | ब्राह्मणॉंका अमोध शाप झछुनकर और उस 'सूसलकों देखकर समस्त द्वारकावासी विस्मित होकर भयसे “व्याकुल हो गये | | तन्दूर्णयित्ा युसटं यदुराजः स॒ आहुकः । समुद्रसलिलि. आस्य्लोह॑ चास्यावशेषितम्‌ ॥२१॥ तब यदुराज उम्रसेननें उस मूसछका चूरा कराकर उसे म्वचे ए रोेके टुकडेखषित समुद्रम फिकवा दिया । कथिन्मत्स्योऽग्रसीछोहं चूणौनि तरटेस्ततः । उह्यमानानि वेलायां लप्नान्यासन्किरेरकाः ॥२२॥ उस लोदेके टुकड़ेको एक मत्स्य निगल गया तथा मूसल- कारा तरंगोंसे वकर समुद्रतटपर छग गया । उससे वरहा 'सेंठे उपज आये। मत्स्यो गृहीतो मत्स्यतैजखिनान्यैः सद्टाणैवे । तस्योद्रगतं खों स शल्ये छन्धकोऽकरोत्‌ ॥२३॥ उस मत्स्यकों दूसरी मछलियोंके साथ मछेरोंने जालमें 'पकड़ लिया और उसके पेटमें जो लोद्देका टुकड़ा था उसे (जरा नामक ) व्याधने अपने बाणकी नोकपर लगा लिया ।




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