तत्त्वविचार | Tattvavichar

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ज्वाला प्रसाद - Jwala Prasad

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हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ईश्वरतत्व ११ प्रधान क्षण दैं---पापाचरणसे निशृत्ति, सदाचरणमें प्रवृत्ति, ईश्वर- में प्रेम, दुःख और हानिमें उद्देगशन्यता और अचछ शान्ति | ये सत्र छक्षण अऊत्ररूपसे उसीमें मिलेंगे जो ঘথাধনঃ इश्वरको माननेवाडा होगा | इस कसौटीपर प्रत्येक मनुष्य अपनी परीक्षा आप कर सकता हैं कि वह कह्ोंतक ईश्वरका माननेवाला है । গল प्रकार निश्चय हो गया कि यथपि सामान्यतः सभी इश्वर- জী मानते हैं परन्तु विशेषरूपसे उसे माननेवाल्लोंकी संख्या बहुत ही कम है| परन्तु विशेषरूपसे माननेवाले ही विशेषरूपसे ईश्वरकी ओर आकर्षित होते हैं | इश्चरका सामान्य ज्ञान जीवको सम्पूर्ण ह5ब्रीसे मुक्त नहीं करता, उसका विशेष ज्ञान ही परम कल्याण- प्रद होता है | जैसे पारसके निकट रहनेपर और उसे पारस कहते रहनेपर मी जबतक उसके गुण, प्रभाव और उपयोगका ज्ञान नहीं होता तबतक मनुप्यकी दरिद्रता वर्नी ही रहती हैं; जैसे ही उसके गुण, प्रभाव ओर उपयोगका विशेष ज्ञान हुआ वैसे ही दर्दिता भी नष्ट हो जाती है । इसी प्रकार परमात्माके विशेष ज्ञानसे दुःखोंकी निदृत्ति और परमानन्दकी प्राति होती है । $रके प्रधानतः दो मेद माने जते है--निर्गुण ओर सरुण। निर्गण खरूपको शुद्ध त्ह्म, परमात्मा, केवछ, चैतन्य आदि नामसे भी पुकारा जाता है । यह मायारहित ओर केवल दै । श्रुति कहती हैं--- यचद्द्वेश्यमआ्राह्ममगोत्रमवर्ण- मचल्लषु!ओत तदपाणिपादस्‌ ।




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