तत्त्वविचार | Tattvavichar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
210
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
ज्वाला प्रसाद - Jwala Prasad
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हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ईश्वरतत्व ११
प्रधान क्षण दैं---पापाचरणसे निशृत्ति, सदाचरणमें प्रवृत्ति, ईश्वर-
में प्रेम, दुःख और हानिमें उद्देगशन्यता और अचछ शान्ति |
ये सत्र छक्षण अऊत्ररूपसे उसीमें मिलेंगे जो ঘথাধনঃ इश्वरको
माननेवाडा होगा | इस कसौटीपर प्रत्येक मनुष्य अपनी परीक्षा
आप कर सकता हैं कि वह कह्ोंतक ईश्वरका माननेवाला है ।
গল प्रकार निश्चय हो गया कि यथपि सामान्यतः सभी इश्वर-
জী मानते हैं परन्तु विशेषरूपसे उसे माननेवाल्लोंकी संख्या बहुत
ही कम है| परन्तु विशेषरूपसे माननेवाले ही विशेषरूपसे ईश्वरकी
ओर आकर्षित होते हैं | इश्चरका सामान्य ज्ञान जीवको सम्पूर्ण
ह5ब्रीसे मुक्त नहीं करता, उसका विशेष ज्ञान ही परम कल्याण-
प्रद होता है | जैसे पारसके निकट रहनेपर और उसे पारस कहते
रहनेपर मी जबतक उसके गुण, प्रभाव और उपयोगका ज्ञान नहीं
होता तबतक मनुप्यकी दरिद्रता वर्नी ही रहती हैं; जैसे ही उसके
गुण, प्रभाव ओर उपयोगका विशेष ज्ञान हुआ वैसे ही दर्दिता भी
नष्ट हो जाती है । इसी प्रकार परमात्माके विशेष ज्ञानसे दुःखोंकी
निदृत्ति और परमानन्दकी प्राति होती है ।
$रके प्रधानतः दो मेद माने जते है--निर्गुण ओर सरुण।
निर्गण खरूपको शुद्ध त्ह्म, परमात्मा, केवछ, चैतन्य आदि नामसे
भी पुकारा जाता है । यह मायारहित ओर केवल दै । श्रुति
कहती हैं---
यचद्द्वेश्यमआ्राह्ममगोत्रमवर्ण-
मचल्लषु!ओत तदपाणिपादस् ।
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