दृष्टान्त सागर [भाग 1] | Drishtant Sagar [Bhag 1]
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
288
श्रेणी :
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No Information available about चन्द्रिका प्रसाद -Chandrika Prasad
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ইউ জীব জী সান २
६ . १
~~~“
है और द्वापर में रहती' हूं” उससे मी--/ तू पृथक बैड 1”
ऐस। कह कर दीद पुनः अपनी रामघुन में लगधया। कुछ ही
खोदने के पश्चोद् एक्र तीसरी स्वी विशौ । दीन ॐ उलक्षे
मी वैसे ही प्रश्ष किये | स्त्री मै उत्तर दिया छि- मैं ब्रह्मणी
हूँ, मेय नाम कीति है और में अन्तःपुर की निवासिदरी हूँ ।”
दीन उसे भी पृथक बैठा भपना कार्य्य करने छगा । 5ुछ ही का *
मे पाद् एक मौर चौथी ली निकली । दीने गे उससे भी
उसी भांति पूछा । वो ने उतर दिया कि- कि में दाम णी हूं,
मेरा नाम धृति है और में सनुआंपुर की निवासिदी हूं । ”
इसे भी दौन मे अछूग विठा खोदना आरस्म किया परन्तु
-उस बीमारी ने पीछा न छोडा भौर भव खो के शान में एक .
विहड़दास हाथ पैर फाडते हये निकटे । दीव ने प्रश्ष किया
कि-- आप रूप कोन हैं कहां आपका निवास है !” पुरुष ने
'उत्तर द्या--'मेरी जाति पांति का तो ख धीर नह परन्तु
' हाँ मेण चाम काम है और में नेत्रशाला का निवासी हूं ।” दी- '
मे कहा-बहां तो एक स्त्री जिसका नाम छज्ञा है रहती है.
“आमने कहा कि--'वह दो मेरी स्त्री ही है । तव दौन ने
कहा' रे हुए, जहाँ लेज्ञा है वहां तेरा क्या काम ?”” ऐसा कह
शीघ्र दलवार के द्वारा उसका सिर घड़ से अछग किया भर
. पुतः कुंदारी ले खोदने लगा | कुछ ही काल में एक मुस्यएड
হাল लाल आँखें किये हैठ फरफराते हुये निकले । दोन मे यह
. भयंकर मति देख कर इस से भी वही प्रश्न किया । इन्होने
' बहा, :.''जाति के चाएडाल और हमारा नाम क्रोध और छोर-
पर के वासी हैं। दीन ते कहा -- वहां एक হল जिसका
जाम दया है, बसती है । क्रोध ने फहा कि--“वह दो मेरी
(स्त्री.ही है । ?? तव तो दीन ने कहा कि-- रै दुष्ट, जहां दया”
| एहती है बहां षरा क्या काम १५ ठेस कह इन्हें, भी दलवार
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