नारीरत्नमाला | Nariratnmala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कंमलादेवी तथा देवलदेवी। | ( १३)
प्राणियोंके प्राण गये| निश्चयही संसारमें उपद्रवंका कारण धन जन 1]
जमीन ( पृथ्वी ) यह तीनरीरै। = .
` ऋणकतां पिता शद्माता च व्यभिचारिणी ।
` भाया रूपवती शदः पुत्रः शद्रः ङपण्डितः॥
जिस स्थानम रानी पद्मावती जलमरीथी वहस्थान अवभी राजप
तानेमें एक तीर्थ स्थान गिना जाति ओर मंदिसे पद्मावती नामकं
देदीकी प्रतिष्ठाकर रुष्य उसकी पूजा करतेंहे ।
कमरदेवी तथा देवरुदेवी ।
पाठकगणः, यद्यपि आपने कमह्दिवी तथा देवह्देवीका नाम तो
नारी होमा परन्तु.उनका छेक वणेन प्रषंगवक्च किपाजाताह ।
कमलादेवी गुजरातकी गहीके राजामि अंतिमराना करणकी रानीथी
. ओर देषरुदेषी उसकीरी पुत्रीथी जघ करण अपते दीवान माधंवकी खक
उपर मोहित होकर बछात्कारपे उस्को अपने महम छाया तव दीवानं
माधव छजित और क्रोषितहों उससे बदला लेनेके कारण दिल्लीको
गया । उस समय दिल्लीम अलछाउद्दीन राज्य करता था। उसने बाद
शाहसे गुजरातकी रसाहू भ्रमिका वणनकर उसके मनकी छलचवांये
और घनके लोभमें फँपाय गुजरातपर चढाहाया । माधव केवल देश-
का वणन करके उसे चढाही न छाया बरत् करणकी अनीतिकोमी
उस पर प्रकटकिया । लडाईमं राजा करण हारकर प्राणलेभागा ।
राजधानीको जीतकर बाद्शाहने वहांकी छूटकराई, उस छूटमें करण
की रानी कमहदिषी उसके हाथमे पडगई निप्रको वेदौ कए्के वह्
दधी देगा । रप, यण ओर छावण्यतामे उप समय कमलादेवीके
समान और कोई ख्री न थी। उसके इन सव गुण ओर् इद्धि तीतर
ताको देख बादशाह उसके ऊपर अल्यन्त मोहित होगया ओर दिल्ली
: पहुँचतेही उसकी अपनी पटरानी वनाया। बादशाहका चित्त उसपर,
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