प्रेमचंद रचनावली 11 | Premchand Rachanavali Vol. 11

Premchand Rachanavali Vol. 11 by प्रेमचन्द - Premchand

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प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्‍होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्‍यासों से परिचय प्राप्‍त कर लिया। उनक

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सांसारिक प्रेम और.... 15 चाहता है कि तुझे देखूं। काश मैं आजाद होता काश मेरा दिल इस काबिल होता कि तुझे भेंट चढ़ा सकता । मगर एक पजमुर्दा उदास दिल तेरे काबिल नहीं । मैग्डलीन खुदा के वास्ते अपनी सेहत का खयाल रक्‍्खो मुझे शायद इससे ज्यादा और किसी बात की तकलीफ न होगी कि प्यारी मैग्डलीन तकलीफ में है और मेरे लिए तेरा पाकीजा चेहरा इस वक्‍त निगाहों के सामने है। मेगा देखो मुझसे नाराज न हो। खुदा की कसम मैं तुम्हारे काबिल नहीं हूं। आज क्रिसमस का दिन है तुम्हें क्या तोहफा भेजूं। खुदा तुम पर हमेशा अपनी बेइंतहा बरकतों का साया रखे । अपनी मां को मेरी तरफ से सलाम कहना । तुम लोगों को देखने की इच्छा है। देखें कब तक पूरी होती है। तेरा-जोजेफ घर इस वाकये के बाद बहुत दिन गुजर गए । जोजेफ मैजिनी फिर टली पहुंचा और रोम में पहली बार जनता के राज्य का ऐलान किया गया । तीन आदमी राज्य की व्यवस्था के लिए निर्वाचित किए गए। मैजिनी भी उनमें एक था। मगर थोड़े ही दिनों में फ्रांस की ज्यादतिथा आर थीडमांट के घादशाह की दगाबाजियों की बदौलत इस जनता के राज का खात्मा हो गया और उसके कर्मचारी और मंत्री अपनी जानें लेकर भाग निकले । मैजिनी अपने विश्वसनीय मित्रों की दगावाजी और मौका-परस्ती पर पेचोताब खाता हुआ खस्ताहाल और परेशान रोम की गलियों की खाक छानता फिरता था। उसका यह सपना कि रोम को मैं जरूर एक दिन जनता के राज का केन्द्र बनाकर छोड़ूंगा पूरा होकर फिर तितर-बितर हो गया । दोपहर का वक्‍त था धूप से परेशान होकर वह एक पेड़ की छाया में जरा दम लेने के लिए ठहर गया कि सामने से एक लेडी आती हुई दिखाई दी । उसका चेहरा पीला था कपड़े विल्कुल सफेद और सादा उम्र तीस से ज्यादा । मैजिनी की दशा में था कि यह स्त्री प्रेम से व्यग्र होकर उसके गले लिपट गई। मैजिगी ने चौंककर देखा बोला-प्यारी मैग्डलीन तुम हो यह कहते-कहते उसकी आंखें भीग गईं। मैग्डलीन ने रोकर कहा-जोजफ और मुंह से कुछ न निकला। दोनों खामोश कई मिनट तक रोते रहे। आखिर मैजिनी बोला-तुम यहां कब आई मेगा ? मैग्डलीन-मैं यहां कई महीने से हूं मगर तुमसे मिलने की कोई सूरत नहीं निकलती थी । तुम्हें काम-काज में डूबा हुआ देखकर और यह समझकर कि अब तुम्हें मुझ जैसी औरत की हमदर्दी की जरूरत बाकी नहीं रही तुमसे मिलने की कोई जरूरत न देखती थी । रुककर क्यों जोजेफ यह क्या कारण है कि अक्सर लोग तुग्जरी बुराई किया करते हैं ? क्या वह अंधे हैं क्या भगवान्‌ ने उन्हें आंखें नहीं दीं ? जोजेफ -मेगा शायद वह लोग सच कहते होंगे। फिलहाल मुझमें वह गुण नहीं हैं जो मैं शान के मारे अक्सर कहा करता हूं कि मुझमें हैं या जिन्हें तुम अपनी सरलता और पवित्रता के कारण मुझमें मौजूद समझती हो । मेरी कमजोरियां रोज-ब-रोज मुझे मालूम होती जाती हैं ।




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