भीतर के गांव | Bhitar Ka Ghao
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)व्यय किया जाए चेटा, जवसे तुम्हारे मौसाजी मरे हैं, घर की दसा ही
कुछ और हो गई है। दुकान का काम आधा भी नहीं रहा, आखिर तो
किसन बच्चा ही है लेन-देन है, उसकी भी हालत अच्छी नही है। किसन
को अभी तजुर्वा नही है। हो भो कैसे, वाप के सामने तो कालेज में
पटता रहा। मैं पहले ही कहती थी कि ज्यादा पटाने से कोई फायदा
नहीं। नौकरी तो हमे करानी नहीं थी। पहले ही से किसन दूकान पर
बैठता हता तो सारा काम सीख जाता 1
“वही अच्छा रहता मीनो, मैने कुछ कटने की जरूरत महसूस करते
हुए कहा, फिर भैया की पढाई भी तो ठीक नही हो सकी ।
“कैसे ठीक होती, बिना वाप के लडके का पढना-लिखना कैसे चल
सकता है ४” फिर मौसी से स्वर धीमा करके कहा, पढाई के लिए पैसा
चाहिए भैया, सो जब कहा से आए ? तुम्हारे मौसाजी के सामने
जो रुपया किस्तो पर दिया गया था, उसका आधा भी वसूल नही हुआ।
और लल्ला, खर्च तो कम होता नही, बढ़ता ही जा रहा है ४! स्वर को
और भी घीमा करते हुए मोसी ने कहना जारी रखा। 'वहू आई है, सो
इतनी फैशनवाली और फिजूलखचं है कि क्या कहू । क्षमी घर-गिरस्ती
की वात विलकुल नही समभती । वह भी पढी-लिखी है न ' मेरी बिल्कुल
राय नही थी कि पढी-लिखी लडकी ली जाए। लेकिन तुम्हारे मौसाजी
बात पवको कर गए थे, इसलिए जच इन्कार करने से चुराई होती । मैं
समभाती हू, पर जभी समझती नहीं। उस दिन तुम्हारे घर जाते वक्त
चेहरे पर पाउडर लगा रही थी। मैंने टोक दिया तो बुरा मान गई'
नुम्हागी भा से तो कुछ नही कह रही थी २”
“नही | वहा तो कुछ नही कहा , हा कुछ उदास जरूर थी।”
“उदास थी तो जा करे । भला गृहस्थ घर मे पाउडर और क्रीम्-
सी चीजे कैसे चल सकतो है ! अभी अकेली हैं, छ महीने पीछे बच्चा
दा जाण्ना । और यह भेरे भी तो दो छोटे-छोटे पिल्ले हैं न जाने नैया
बेन पाए लोगी। मैंतोफिक्र के मारे घुली जाऊ हु। कुछ समझ मे
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