जापान दर्शन | Japan Darpan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
362
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कतः = सि त 35
সি
भूगोल । _ “डे
निक्तो नगर का इन्द्रधनुषाकार पुछ बड़ा प्रसिद्ध है । यह
लकड़ी का पुल है। इसके ऊपर ऐसा खुन्दर र किया हुये कि
কৃত की धूप रूगने से इसमें इन्द्र-धनुप के से रंग नज़र आते हैं ।
यह पुर ऐसा पवित्र समझा जाता है कि सिचाय मिकाडो জী,
জাই उस पर से नहों गुज़रता ।
जापानियें के घर बहुधा एकमंज़िले ही हेतिं है भरर लकड़ी
से बनाये जाते हैं जिनके ऊपर छप्पर, तझुते या खपरेल की छत
हे।ती है। ज़मीन के भीतर नॉंव नहों हाती | दीचारे रूकड़ी के
चाखटों की बनी होती हैं जिनमें रात के समय तझुते छगा दिये
जाते हैं। गर्मियों मे घर चारों तरफ़ से खुले रहते हैं ओर जाड़ों में
चोखटो के सीतर कागज चिपका कर हवा की रोक की जाती है ।
धर के भोतर लकड़ी के ने हए चोखटो के पदँ के ल्गादेने से
पृथक् पृथक् कमरे लना दिये जा सकते है 1 यह परदे नीचे जेमन
म धस जा सकते हैँ! अथवा ऊपर छत की तरफ़ भी हटा दिये
जा सकते हैं । प्रशं दो गज् लंबी, गज़ भर चौड़ी चटाइयो से टके
रहते हैं। मकान भी ऐसे ढंग से बनाये जाते है कि उनमें चटाइयें
का जेड़ ठीक ठीक बैठ जाता है । चटाइयें की गिनती से
ही कमरे का अन्दाज़ा किया जाता है। यथा छः चटाई का कमरा,
दस चटाई का घर आदि । रसाईघर में ऊकड़ी का फर्म हेता है ।
पिछवाड़े के कमरे अच्छे सजे रहते हैं। बगीचा भी पिछचघाड़े की तरफ़
हो होता है । इन कमरों का निकास दक्षिण की ओर होता है । इसी
से सर्दी मे उत्तर की हवा और गर्मियों मे सय का उत्ताप कण्टदायक
नहों होता | मकानों के भीतर मेज़, कुर्सी, तख्तु, पलंग आदि कोई
असबाब नही होता । रज़ाई ओर बिस्तरे सब तह करके एक और
रख दिये जते है । अन्य आवद्यक पदाथ गोदाम में रहते हैं ।
हर एक मकान के पिछवाड़े जो बागीचा होता है| बड़े परिश्रम
है क 4 ২২
से तय्यार किया जाता है। इसमें पहाड़, फील, टापू, नदी, पुछ और
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