सायरन और सजगता | Sayuran Aur Sejagat

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Sayuran Aur Sejagat by भूर सिंह - Bhoor Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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5 ১৫৯৫১২ ইং ১35৫৯6১0525 8৫2র১582825১হ5৫ राजस्थान की धोरों की घरती में, जहा पग पग पर प्रकृति के साथ संघर्ष मय जीवन व्यतीत करना पड़ता है--उस जीवन का दिग्दशंन “ठ ठो वाले देश” नामक कविता मे कराया गया है। कही राजस्थानी वीर शहरी वातावरण में अपने मूल को न भूल बेठें, इसीलिए पृथ्वी पाताल हिलाकर शोणित से खेले जाने वाले फाग की याद दिलाकर प्राणों को हथेली पर रखकर दुनियाँ को अपनी वीरता दिखाने के लिए प्रोत्साहव देना कवि नही भूलते है । इस कृति को जब आसाम, बगाल अथवा हिमालय की तराई मे रहने वाले व्यक्ति पढेगे, तब वे अपने को मरु-प्रदेश में विचरण करते हुए अनुभव करेंगे । इस कृति का एक उदाहरण प्रस्तुत हैः-- “तूफानी कुटिल कुचालो में, झोले --- पाले. भूचालों में, फिर भी यहु हठ श्रहुट रहे, है इनकी जड़ पातालों मे, कीली ज्यो मस्तक शेषनाग, हे हे वाले देश जाग प्रस्तुत सग्रह मे देश प्रम श्रौर जागृति से श्रोत प्रोत ऋृतियों की बानगी देखते ही वनती है :-- >€ ১৫ ১৫ जां निसारी जानते हैँ, सर हयेली पर लिए 1 सै वतन के वास्ते हूँ, यह वतन मेरे लिए 11 >< >< >< आजादी की लहूर दम्मो से कभी रक्तौ नहा । जो भभकती श्राग है वह्‌ श्रागत्ते बुूती नही ॥॥ >< >< চে উচিত ই ই৫১৪১৩৫১৫ ই ১ 2৯৫১5 ११५९१९५६ ०६८३२ ><




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