भारतीय चित्रकला का इतिहास | Bhartiya Chitrakala Ka Itihas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
207
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ह भारतीय चित्रकला का इतिहास
यशोधर पंडित जयपुर के अधिपति प्रथम जयसिंह के सभा-पड़ित थे। उनका कार्यकाल 11-
12वीं शती निश्चित होता है। उन्होने ' आलेख्य' कौ रीका मे जिन छह भङ्ग (षडङ्ग) का
उल्लेख किया है बह निश्चय ही भारतवर्षं की चित्रकला मे सुदीर्घ परम्परा के रूप मे विद्यमान
रहा होगा जिसके आधार पर उन्होंने इसे लिपिबद्ध किया।
भारतीय चित्रकला के पुनर्जागरण काल (एला81५५8४८९०) के सस्थापक शल्पाचार्यं
अवनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारतीय चित्रकला को महिमामडित करने के उद्देश्य से उक्त श्लोक कौ
व्याख्या के रूप मेँ एक विस्तृत निबन्ध 'भारत शिल्प के षडड्भ ' शीर्षक से प्रस्तुत किया जो
“भारती ' पत्निका में प्रकाशित हुआ और जिसका अनुवाद विश्व की विभिन्न भाषाओं में हुआ।
इसका हिन्दी अनुवाद डॉ० महादेव साहा ने प्रस्तुत किया जो हिन्दी साहित्य सम्मेलन की शोध-
पत्रिका 'सम्मेलन-पत्रिका' के कला अंक मे प्रकाशित हुआ।
हमारा षडड़, यशोधर के बहुत पहले प्राचीन काल से ही भारतीय शिल्पियों को सुविदित था
क्योकि हम देखते हैँ किं ई० 479 से 501 के नीच चीन के शिल्पाचार्य शीहो (अघ) 11०) ने चित्र
के जो षडङ्ग (६५ (३१५०६) लिपिबद्ध किये লি সাই অতুল से बहुत-कुछ मिलते हैं। कहते हैं
कि अमिताभ बुद्ध मूर्ति सर्वप्रथम चीनी शिल्पी ताई कुसी (191 (४७०) ने 300 ई० में बनाया। इससे
इस सम्भावना को बहुत बल मिलता है कि बौद्ध शिल्प-पद्धति के साथ हमारे चित्र का षडड़ भी
चीन पहुँचा।
प्राचीन सभ्यता के केन्द्र भारत एवं चीन के चित्रकला षडड़ः में बड़ा साम्य है। इसे
तुलनात्मक अध्ययन से भली- भति समञ्चा जा सकता है ! चीन का षडद्ग इष प्रकार है--
57111031 ¶ 0८ 814 1.116-प्रठर्लाला( ( आध्यात्मिकं भाव ओौर जीवन छन्द)
काल ०0 छ्॒॥-ए७०१८ ए। 40४४४ (७८५ (रेखोकन मे तुलिका प्रयोग कौ विधि)
एणा जरा वा5 1ढंगाणा 10 00०0०, (वस्तु के सापेक्ष आकार)
0166 ० 0019৬7 811)70111816 ० (४६ ०01८८15. ( वस्तु के अनुरूप रंगों का चयन)
(०0एकआी10॥ ४४५ ह7०७एशा४ (संयोजन एबं समूहीकरण)
(16 (णाह ग लाञडञंर फष्डाल९८५७. (उच्छकोरि की श्रेष्ठतम कृति कौ प्रतिलिपि)
~ 56९1-0 7८61, 714 (८८4५, ४0 224
अन्य विद्वानो ने चीमी षडङ्ग का दुसरी तरह से अनुचाद किया। जैसे--
एए ४1४७५ (गतिमान प्राण- छन्द )
42181011108] 516800016 (ফ্কাহীকিক্ষ জহন্ননা)
0০91070৮710 1410 ( प्रकृति से समानुरूपता)
50009 ठ॑ ०01०फछ5ं7९ (वर्ण विन्यास या रगो की उपयुक्तता)
210506 0010195110।। (कलात्मक सथोजन)
[1015] (परिसज्जा या फिनिश)
00125 18002840207 10 ॥510979 0 (प्रारूर 2टा7/दोर 377, | ৭
इसी तरह ভিখ (71718), बिन्यान (8॥ए०0) तंथा जापान के प्रसिद्ध शिल्पशास्त्री आकाकुरा
(0०४५१५४४) ने चीनी षडङ्गं की अलग-अलग व्याख्या कौ है।
अवनीन््रनाथ ইশীহ का कथन है चीन का षडङ्गं नाना मुनिर्यो के नाना मत के कुरे के
अन्दर से किस्ल प्रकार प्रकट होता है और देश काल पात्र भेद से वह किस प्रकार परिवर्तित
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