अवधी कृष्ण काव्य और उसके कवि | Avadhi Krishna Kavya Aur Uske Kavi

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Avadhi Krishna Kavya Aur Uske Kavi by मुरारीलाल शर्मा - Murarilal Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ धवथी कृष्ण काज्य और उसके कवि समूचे राजस्थान पर हो गया था, यह समुद्रश॒ुप्त के प्रयाग वाले स्तम्भ से भी स्पप्ट है | इस जाति में ईइवरसेन नाम का एक बड़ा मारो राजा हुआ जिसका एक शिलालेख नासिक मे प्राप्त हुआ है । जिनके विवरण ने ज्ञात होता है कि वह गोपाल इंप्ण का उपासक था | इन्ही आभीरो ने अपने महत्व ग्रे गोपाल क्ष्णः को बासुदेव कृष्ण से सम्बद्ध कर दिया 1 इस प्रकार महाभारत में वरणित वादुदेव कृष्ण ढ़हा के अबतार हो नहीं रहे, वे गोपाल दृण्ण' पे रू्पास्तरित भी हों गए और गोपाल क्ृण्ण की लीलाएँ वासुदेव कृष्ण की लीलाएँ बन गई । इसी का परिणाम सह हुआ कि नारद पाचरात्र की 'ज्ञानामृत सार सह्ठिता में क्रप्ण की बाल लीन का बर्णन किया गया । डा० भण्डारकर ने जानाय सार गदितः का रचना- काल ईसा की चौथी शताव्दी के बाद ही निर्धारित किया है ।? सम्भवतः इसी का परिणाम यह हुआ कि पुराणों में गोपाल कृष्ण की रास-लीला आदि के वर्णन का विस्तार हुआ ओर परवर्ती काव्य में दान-लीला तथा मात-लीला भादि के प्रसगो को प्रश्नय दिप्रा गया । दक्षिण भारत में कृष्ण भक्ति ओर पराचरात्र बर्म ईला को पहली शताब्दी पूर्व ही पहुँच गये थे । इसीलिए तामिल कवियों ने अबने काव्य में पाचशात्र पूज का विधान तथा कृष्ण की बाल लीलाओ का सूक्ष्म वर्णन किया है। इन कवियों का क्मय भी ईसा की प्रथम गनाहदी का है । इसके अतिरिक्त रक्षिण में पललग राजाओं के शिवालेखों से भी यह्‌ स्पष्ट हे कि उस काल' भें भागवत धर्म पर्याप्त प्रचलित एवं सम्दानित था ।' आउवी अताव्दी मे यह प्र्म शकर के अद्वैत के सम्पर्क में आया । अपनी भक्ति के आदर्ण के कारण इसे शकश के मायाबाद से संघर्ष लेता पड्धा । नवी जनताव्दी के आलवार सतो को कावताओ से प्रभावित होकर ११वी जती के रामानुज ने भागवत अर्भ को दार्गनिक्त सिद्धान्तों के अनुकूल प्रचारित किया ६ इस प्रकार आठवी बताव्दी से लेकर १५वी जताब्दी तक दक्षिण ही धर्म-सुधार का प्रमुख केन्द्र रहा । बैज़गव और जद मभौ भक्तो नै भक्ति का प्रचार किया और आचार्यो ने अपने दार्शनिक सिद्धान्तों का प्रतिपादत करके भक्ति परद्धति का रूप स्थिर किया | इस प्रकाश इन क्षाचार्थों से भक्ति की लहर समस्त भारत में फैल गई । ह्न जब आठवी घताब्दी में राजनीतिक और धार्मिक उधल-पुथल हो रही थी, जैव और वैष्णन आवार्यो ने मिलकर बौद्ध और जन धर्मकः उट कर विरोध किया और उन्होने नदेंशीय भापा में नास्तिक धर्म (दौद्ध और অল धर्म) के विरोध में अपने सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया | डा० ताराचन्द्र का विचार है कि हिन्दू क्रमं का जो स्वरूप इस समय स्थिर हुआ, उसका बहुत कुछ श्रेय बौद्ध और जैन धर्म को ही है | इसी के परिण[मस्वरूप तामिल- नाड के शा्डियार और आलवार सरुतो ने ७छवी से १एवीं जती के समय में अपने विचारों को पौराणिक आख्यानों के साथ समस्वयात्मक रूप दिया ।* हिन्दी साहित्य की भूमिका : डा० हजारीप्रसाद ट्िवेदी, पृ० २४ । कल्याण, श्रीकृष्णक, श्रावण १६८८ में श्रीकृष्णावतार झीप॑क लेख | कण विज्म, शैविज्म एण्ट आइनर रिलीजस सिस्टम्स * डा० भण्डारकर, पृ० ४१ । बलीं हिस्दी आव वैष्णविज्य इन মার হচ্তিসা : कृष्णास्वासी आयगर, पृ० ६० | आकियोज्नीजोकस सर्वे आव इण्डिया कर्निधम जिल्द है प्लेट १७ व ३० इनफ्भुएस माव इस्लाम आने इहियन कल्चर पृ० ८६-८७ क ডি ए 9 ज्रौ क्छ




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