राजवंश : मौखरी और पुष्यभूति | Rajvansh Maukhari Aur Pushyabhuti

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : राजवंश : मौखरी और पुष्यभूति - Rajvansh Maukhari Aur Pushyabhuti

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about प्रो० भगवती प्रसाद पायरी - Prof. Bhagavati Prasad Paayari

Add Infomation AboutProf. Bhagavati Prasad Paayari

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
মীলরী হাসনহ্য ७ मौखरी वश मुर जौर मौखर (यवा मौय) दोना नामो य सुप्र था। मौवरिया का उल्लेख करते हमे हर्षचरित में बाप ने उन्हें सकल्भुवन द्वारा नमस्कृत मौखरबन्नीय कहा है जौर दूसरे स्थान पर उन्हें मुखरवत्री भी कहा है-- चरीय्ररागा च मूर्धि स्थितो माद्र पादन्यान इव सकटभुवन- नमम्दखो मौतगे वदा --' साननूर्ववयादिव पुयूमूतिमुखरवदौ (हर्षचरित, सम्पादक प० जगन्ताय पाठक, चतुय उच्छवाम, पृ० २४१-२५०) । बाण के वणन से यह भी प्रद्ीव होता है कि जिस प्रकार पुप्यमूति वश হা ল্যান অমর जादिपरुप पुप्यमूति था, उसी प्रकार मौखरी वश का आई पुरुष मुखर या मौखर था जिसके नाम पर उसका व मौखरी नाम से प्रसिद्ध हजा । ইলা রঃ পে টি बाए ने पुष्यमूचि और मुखर वर की उपमा सोम जौर सूर्य से दी है [_ जभिलेवो में हमें ज्ञाव होता है कि पुममूवि राजा जादियमक्त ये जिसमे प्रकट हैं कि पुगयमूति वस सूर्यवद्ञी था और मोलरसी सोम अयवा चन्द्रवतीय क्षत्रिय ये 1हरहा- अभिरेख से मी मोलरियों का सम्भ्ात क्षत्रिय लेना विड हं । में मी मौखरियों का सम्भ्राव क्षत्रिय होना सिद्ध है । 1 कन्नौज वे मूप्रनिदध मौतवरौ राड के ज्वा इम राजवुलकी एक शाखा के तीन जभिलेख (बाइव पायाणन्यूप अभिलेख) राजपूताना के कोटा राज्य में प्रप्त हुये हैँ । तीमरो झताउदी ई० सन्‌ (माल््र मवत्‌ २९५७ २३८ ई० सन्‌) के इस जभिलेखो में मौखरियो के एक महासेनापति कुल का उल्लेख हैं, (8छा 15৭ ০, তা, ২০ 7, एए 42-13 28४१ 501४८४ 195, 9 12) | ये मौखरी महामेनापति सम्मवत परिचिमी भारत के कसी नराधिप्, सम्मवतया उज्जैन के दाकक्षत्रप (8९1०१ 1४5, 93, 9 2) के जघ्न मामन्त जयवा सैनिक गवर्नर पे---786८ ८०१४२ 51201002015 020 05৩ 06805 ০6 8520721 0८ प्राप ০৬৩০০ হ0৩য 50726 0020০৩ ग = ৮5512115012 10 ৮৩ চেতন 0৩0 # 097 (एप्त ए 604)1 मौखरी राजदुल की एक जन्य शाखा गया मे भो मिली हैं। गया के मौरी वैद्य कहे गये हैं। किन्तु डा० जायसवाल इन्हें प्रचीन सुप्रसिद्ध क्षत्रिय-कुल के मौरियो कै वज मानते ह । यदि डा० जायमवार का मत सही माना जाये तो दैसा कि डा० तिपादी ने मत ब्यक्त किया हैं, “पह स्वीकार करना पड़ेगा कि ममय के परिवर्दन, गजत्व के छ्वाम अयवा कर्म के परिवर्तन के फरस्वरूप गया के मौखरी क्षत्रिय रे वैच्य हो चने ই (0152০ 0५८०१९०१ 1213, ए 288} ॥




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now