भाषाभास्कर | Bhasha Bhaskar

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Bhasha Bhaskar by W. Etheringtion

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साधालास्थर घन ४८ न मर ये अपने २ वचगों के स्थान नासिका से भी चाले जातें हैं इसलिये थे साननसिक कछाते हैं ॥ _. ४£. जिन अक्षरों के स्थान और प्रयन्न समान छोतें हैं वे आपस न सब न मे... सि७ ही 2२ कर से कहांति- हैं जेसे का ओर ग का स्थान कणठ हे ओर इनका समान प्रस्ल हे इस कारण क ग आपस में सबसयें कहाते हैं । नीचे के दे। चक्नां वे बणेमाला अचारों के स्थान श्रार प्रयल्न ज्ञात छाते हें ॥ छु0 कि स्वर चढ़ ी और चाप प्रयत्न 0 | दीघं स्थान |. दीं काणठ . ।- अऋ च्प्रा बाण्ठ +- तालु स्‌ तालु न +- तालु रे सेठ | उठ. | जे न ओप्ठ | सा मुद्दा. | ऋ | कण्ठ न ओ द्न्त जद । टू जन चना छाष अपघाप ५. पु थ्रि हर कद स्थान - लिए छि दि हि | लि छा की कि छि चर | कण्ठ य श॒ | तालु बी सनक न शी लय सर लिप पर सी मम अल के. र | प म़्द्धा रो लल स द्भ्त हट नि रितिक सिर व इत्व प्शरा चार मा




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