कृषक जीवन सम्बन्धी बृजभाषा शब्दावली | Krishak Jeevan Sambandhi Brijbhasha Shabdavali

Krashak Jivan Sambandhi Brijbhasha Shabdavali Khand-i by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १२३ ) ६२४९- जिस बैल की पींठ का रंग हिरन की पींठ का-सा होता है, वह कुरंगिया कहाता है। लाल और पीले रंग के बैल को गोरा कहते हैं-- “नामी रंग कुर्क रङ्ग, मोरौ गमरा जान [५१ सफेद पसमी (बाल) और नीली खाल का बैल घौरा और सफेद खाल तथा नीली पसमी का लीला कहाता है। पीले रंगवाले बैल को पीरोदा या महुअर (महुए के से रंग का) कहते हैं । लीले और धौरे बैल बढ़िया; लेकिन महुअर बैल बहुत घटिया होता है-- “हों को मोट रद्ध में महुअर । ताके लें का कहति बहूअर ॥॥ चले तो आधे दाम उठाने | नहीं तो भड़ड भये सब जाने ॥?९ यदि देह पर लाल, काले तथा सफेद रंग के छोटे-छोटे धब्बे और चँदें हों तो उस बैल को छुर्य या छिसस्‍्कैला कहते हैं। काले और सफेद रंग की धारियाँ या ध्वे जिस वैल पर हो, उसे कचरा या चितकचरा कहते हैं। जिस बेल का मुँह सफेद हो और शेष शरीर कालादहो, तो उसे मैँहधोवा कहते है । माये पर बड़ी और गोल सफेदी हो, तो उसे चँदुला कहते हैं | यदि खाल सफेद और पसमी पीली हो तो उसे सुनैरिया धौरा कहते हैं | कत्थई रज्ञ का बैल लाखा या खैरा कहाता है। जिसकी देह पर कई सफेद फूल-से हों, उसे फुलुआ कहते हैं| फुलुआ अच्छा नहीं माना जाता-- “जहाँ परै फुलुआ की लार | लेउ खरैरी फारो सार ॥”३ यदि किसी बैल का सारा शरीर त्रिलकुल सफेद हो, पसमी भी सफेद हो और आँखों की पुतलियाँ और विनूनियाँ (वरौनियाँ) भी सफेद हों, तो उसे 'भुर्रा! कहते हैं | यह बज्जा होता है-- “बेल विसाहन जइयौ कन्त । भुर्रा के न देखियो दन्त ॥[?४ 6५४८--सुवभाव के आधार पर चैलों के नाम--हल, गाड़ी आदि में गिरकर लेट जानेवाला बैल गिरं श्रौर श्रद्‌ जानेवाला कामचोर गरिआ (सं० বালি) कहाता है। गरिश्रा को खरीद कर किसान तो अपना करम ठोकता है; लेकिन गरिआ सार मं पड़ा-पड़ा चैन की वंखी वजाता है। काव्य-प्रकाश-कार ने गरिओआआ? की सुख-नींद को अच्छी तरह पहुँचान लिया था [५ गिर्स के सम्बन्ध में किसान का कथन है--- “सैल जुआ की छुचत ही, गिर्स धरनि गिराय | साँठ आर की चुभनि पै, टाँग देइ फेलाय |[!९ १ हिरन के रंग का बे सामवर और बेल गँवार (खराब) होता है। २ महुए के एर की भोति पीरा, भर मुह का मोटा वेर हो तो उसके रिष दे खी ! चू क्या कहती है ? यदि चछ जाय तो आधे दाम उठ आये; नहीं तो सब पैसा भड्ड (व्यर्थ) हुआ समो । ३ सार में जहाँ फुलुए की खार मुह का थूक) गिरे, चहाँ से उसे सुरन्त खरेरा (माढ़ ) लकर्‌ भाड दना चाहए। ५ यदि बेल खरोदने के लिए जाओ तो हे पति ! भुर के तो दाँत भी सत देखना। ५ “गुणानामेव दौरात्म्यात्‌ धुरि धुर्यो नियुज्यते । असंजातकिणस्कन्धः सुखं स्वपिति गौर्गलिः ४ --मस्मट : काव्यप्रकाश, उच्छास 4०1 श्रोकं ४८० 1 € জুত फी सेल (एक छोरी सी लकड़ी जो झुए के सिरे पर छेद में पड़ी रहती है) को छते ही डिश पृथ्वी पर गिर पड़ता है । उठाने के लिए यदि साँटा (चमदढ़े का तस्मा जोदैने में वेंधा रहता है) भौर आर \पैने के सिरे पर डुकी हुई नॉकदार पतली कील था শীলা) के लुभाने से बह अपनी योंगें शोर फैला देता है 1




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